राजस्थान में सियासी समीकरण तेजी से बदल रहे हैं। सीएम पद के प्रबल दावेदार सचिन पायलट ने गहलोत कैंप के विधायकों से मेलमिलाप करना शुरू कर दिया है, लेकिन गहलोत कैंप के विधायक खुलकर पायलट के साथ नहीं आ रहे हैं। शुक्रवार को जब पायलट विधानसभा पहुंचे तो गहलोत कैंप के विधायकों ने हाथ जोड़कर तो अभिवादन किया लेकिन आगे नहीं बढ़े। मतलब साफ है गहलोत कैंप के विधायक निर्देश के इंतजार में है। सूत्रों के अनुसार आज सीएम अशोक गहलोत जयपुर लौट आएंगे। अपने समर्थक विधायकों के साथ रणनीति पर चर्चा करेंगे। सीएम गहलोत 28 सितंबर को कांग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए अपना नामांकन दाखिल करेंगे। सूत्रों के अनुसार 27 सितंबर को गहलोत समर्थक मंत्री और विधायक दिल्ली जा सकते हैं। अगर ऐसा हुआ तो यह अपने आप में गहलोत का शक्ति प्रदर्शन होगा। जिसके जरिए वो संकेत देंगे कि राजस्थान में मुख्यमंत्री पद पर कौन बैठे उसमें गहलोत की राय सबसे महत्वपूर्ण होगी? जब गहलोत खुद कांग्रेस के आलाकमान बनने जा रहे हैं तो फिर फैसले में उनकी राय को गांधी परिवार महत्वपूर्ण मानेगा।
मंत्री के ट्वीट से अटकलों को मिली हवा
गहलोत के मंत्री सुभाष गर्ग ने सीएम सलाहकार संयम लोढ़ा के ट्वीट पर लिखा- बिल्कुल सही लिखा। मुझे ध्यान है कि नीलम संजीव रेड्डी 1960 से 1963 तक कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। तब 20 मार्च 1962 से 20 फरवरी 1964 तक आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। दरअसल, सीएम सलाहकार संयम लोढ़ा ने ट्वीट कर लिखा- राजनीतिक फैसले नियम के आधार नहीं किए जा सकते। वक्त की नजाकत,जरुरत, राय, उपेक्षा सब का मिश्रण ही निर्णय की सफलता का मार्ग बना सकता है।
समर्थकों को दावा गहलोत ही करेंगे बजट पेश
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि गहलोत इतनी आसानी से हार मानने वाले नहीं है। पायलट को उड़ान भरने से रोकने के लिए दीवार खड़ी कर सकते हैं। यहीं कारण है कि पायलट के सीएम बनने पर फिलहाल सस्पेंस बना हुआ है। गहलोत समर्थक विधायक महेंद्र चौधरी का दावा है राज्य का बजट सीएम अशोक गहलोत ही पेश करेंगे। ऊंट किस करवट बैठेगा इसका पता तो कांग्रेस के अध्यक्ष पद के चुनाव परिणाम के बाद ही सामने आएगा। लेकिन इतना तय है कि गहलोत आसानी से समर्पण करने वाले नहीं है। वे बेहतरीन चाल चल अपने विरोधियों को हमेशा से चौंकाते रहे हैं। इस बार वे ऐसा कुछ कर पाएंगे या नहीं यह देखने वाली बात होगी।
गहलोत की गुगली में फंस सकते हैं पायलट
मुख्यमंत्री के रूप में अशोक गहलोत का यह तीसरा कार्यकाल है। वर्ष 1998 में मुख्यमंत्री बनने के लिए गहलोत का राजनीतिक कौशल काम आया। उस समय मुख्यमंत्री बनने के सबसे प्रबल दांवेदार परसराम मदेरणा को पटकनी देकर गहलोत की ताजपोशी हुई थी। एक बार मुख्यमंत्री बनने के बाद गहलोत को पार्टी के भीतर कभी कोई चुनौती नहीं मिली। क्योकि पार्टी को भारी बहुमत मिला था। वर्ष 2008 में तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी मुख्यमंत्री पद के प्रबल दांवेदार थे, लेकिन वे महज एक वोट के अंतर से चुनाव हार गए। ऐसे में गहलोत के लिए मैदान साफ। वर्ष 2018 में गहलोत को मुख्यमंत्री बनने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ी। प्रदेश अध्यक्ष के रूप में सचिन पायलट ताल ठोक मैदान में आ डटे। आखिरकार अपने राजनीतिक कौशल और गांधी परिवार के प्रति अपनी वफादारी के दम पर वे एक बार फिर मुख्यमंत्री बनने में सफल रहे। अब एक बार फिर पायलट ने उड़ान भरने की तैयारी कर ली है। गहलोत कैंप के विधायकों को विश्वास है कि राजनीति का यह माहिर जादूगर एक बार फिर चौंका सकता है।