दिल्ली विश्वविद्यालय से संबद्ध और दिल्ली सरकार द्वारा 100 फीसदी वित्त पोषित 12 कॉलेजों को आर्थिक संकट का सामना कर पड़ रहा है। कई कॉलेजों में जहां वेतन का संकट है, वहीं बिजली बिल, सफाई, सुरक्षा आदि पर होने वाले खर्च भी बकाया हैं। इस बारे में डीयू प्रिंसिपल एसोसिएशन, शिक्षक संगठन ने अपनी आपत्ति दर्ज कराई है। हालांकि, 12 कॉलेजों में से किसी के प्रिंसिपल ने खुलकर इस बारे में नहीं बोला है।
हालांकि, इनमें से एक दीन दयाल उपाध्याय कॉलेज प्रशासन ने फंड की कमी के कारण अपने स्थायी शिक्षकों को कम वेतन दिया है। कॉलेज प्रशासन ने शिक्षकों को अभी तक केवल जुलाई का ही वेतन दिया है। कॉलेज ने नोटिस निकालकर कहा है कि सभी स्थायी शिक्षकों को सूचित किया जाता है कि फंड की कमी के कारण असिस्टेंट प्रोफेसरों को 30 हजार रुपये और एसोसिएट प्रोफेसरों को 50 हजार रुपये उनके जुलाई के वेतन से रोके जा रहे हैं। ये राशि जैसे ही फंड उपलब्ध होगा, वैसे ही जारी कर दी जाएगी।
हालांकि, कॉलेज प्रशासन के इस कदम को लेकर कॉलेज की गवर्निंग बॉडी चेयरमैन ने आपत्ति जताई है और जवाब मांगा है। कॉलेज प्रिंसिपल को लिखे पत्र में चेयरमैन ने पूछा है कि जब उच्च शिक्षा विभाग ने वेतन के लिए आवश्यक राशि जारी की है तो उन्होंने वेतन में कटौती क्यों की। यही नहीं चेयरमैन ने प्रिंसिपल से पूछा है कि अगर कॉलेज के पास बैंक में 25 करोड़ रुपये हैं तो उन्होंने शिक्षकों का वेतन जारी क्यों नहीं किया। कॉलेजों में समय में वेतन के लिए फंड जारी न करने का आरोप कॉलेज के अलावा डीयू शिक्षक संघ ने भी लगाया है।
जरूरत से कम दिया जाता है पैसा डूटा
दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ ने भी फंड कटौती के मुद्दे को आपत्तिजनक बताया है। डूटा के अध्यक्ष प्रो. एके भागी का कहना है कि डीडीयू ने कुछ वेतन शिक्षकों को जारी कर दिया है, जबकि बाकी 11 कॉलेज में शिक्षकों को जुलाई का वेतन भी नहीं मिला है। दिल्ली सरकार के 12 कॉलेज प्रताड़ना झेल रहे हैं। हम इसके लिए उपराज्यपाल से मिले थे। हम दिल्ली सरकार से बार-बार कह रहे हैं कि वह फंड कटौती के साथ पैसा जारी क्यों कर रही हैं। जैसे किसी कॉलेज का खर्च 40 करोड़ है तो सरकार 35 करोड़ ही दे रही है। दिल्ली सरकार कॉलेज में होने वाले खर्च से कम पैसे दे रही है।
दिल्ली सरकार का पक्ष
दिल्ली विश्वविद्यालय केंद्र सरकार का है। वह राज्य सरकार के किसी नियम को नहीं मानता। जिस कॉलेज ने यह विवाद खड़ा किया है, वह अपने चेयरमैन या गवर्निंग बॉडी से चर्चा किए बिना मनमर्जी से कोई भी आदेश पारित कर दे रहा है। वेतन संबंधी आदेश पर भी उसने गवर्निग बॉडी तक से बात नहीं की। इनके पास करोड़ों की एफडी पड़ी हैं, जिनका इस्तेमाल अपने हिसाब से करते हैं। इसमें बहुत बड़ी धांधली हो रही है।
बदनाम करने की साजिश
भाजपा की ओर से जानबूझकर शिक्षकों का वेतन मनमाने तरीके से काट कर दिल्ली सरकार को बदनाम करने की नाकाम कोशिश है। गवर्निंग बॉडी चेयरमैन का सवाल वाजिब है कि आखिर 25 करोड़ एफडी में रहने के वावजूद वेतन क्यों काटा?
शिक्षकों की आपत्ति
दीन दयाल उपाध्याय कॉलेज के शिक्षकों ने भी वेतन न मिलने को लेकर आपत्ति जताई है। हालांकि, कॉलेज के एक शिक्षक का कहना है कि कॉलेज में बिजली का बिल बकाया है। शिक्षकों ने कहा दो माह से वेतन की दिक्कत है। इस कॉलेज में 124 शिक्षक, 3200 छात्र हैं। यहां हमारे पास 25 करोड़ स्टूडेंट्स सोसाइटी का पैसा है, इसे कॉलेज कैसे वेतन के रूप में दे सकता है।
फंड रोकने के मुद्दे को पूरी तरह राजनीतिक बताया
दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रिंसिपल एसोसिएशन के सचिव प्रो. मनोज सिंहा का कहना है कि दिल्ली सरकार की ओर से 12 कॉलेजों में फंड रोकने का मुद्दा पूरी तरह से राजनीतिक है। दिल्ली सरकार इन 12 कॉलेजों पर नियंत्रण चाहती है, जबकि साहिब सिंह वर्मा जब दिल्ली के मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने दिल्ली में न केवल ये 12, बल्कि अन्य कॉलेज भी दूर दराज के लोगों की जरूरतों को ध्यान में रखकर खोले थे।
दिल्ली सरकार बार-बार इन कॉलेजों का अनुदान रोक देती है। यूजीसी भी डीयू के कॉलेजों को अनुदान देती है, लेकिन कभी हस्तक्षेप नहीं करती। किसी भी कॉलेज का प्रिंसिपल एक प्रशासनिक पद है। वह नियमों से बंधा है और उसके अनुरूप ही कार्य करता है। जब उसके पास पैसा नहीं रहेगा तो वह कैसे पैसा देगा।