यूपी के बजट सत्र का आज दूसरा दिन है। कल राज्यपाल के अभिभाषण के दौरान विपक्ष, खासकर समाजवादी पार्टी ने जमकर हंगामा किया था लेकिन इस विरोध प्रदर्शन में आजम खान, शिवपाल यहां तक कि ओमप्रकाश राजभर भी शामिल नहीं हुए। समाजवादी पार्टी सदस्य जहां हाथों में तख्ती लेकर विपक्ष के अन्य सदस्यों के साथ विरोध प्रदर्शन कर रहे थे वहीं आजम खान के बेटे और सपा विधायक अब्दुल्ला आजम ने इस विरोध प्रदर्शन से दूरी बनाए रखी।
इसके पहले कल ही आजम खान और अब्दुल्ला आजम ने विधायक पद की शपथ ली थी। आजम खान विधानसभा की कार्यवाही में शामिल नहीं हुए। अब्दुल्ला आजम विधानसभा की कार्यवाही में मौजूद जरूर रहे लेकिन सपा के विरोध प्रदर्शन में शामिल नहीं हुए।
सपा के सदस्यों ने अखिलेश यादव की अगुवाई में किसानों को सस्ती बिजली, शिक्षा-सिंचाई और विपक्ष के लोगों पर झूठे मुकदमे न लगाने की मांग को लेकर प्रदर्शन किया। सपा सदस्यों के इस विरोध प्रदर्शन में राष्ट्रीय लोकदल के विधायक शामिल रहे लेकिन सुभासपा के विधायक दूर रहे। पार्टी के छह विधायक जीतकर सदन में पहुंचे हैं। ओमप्रकाश राजभर ने तो अखिलेश को नसीहत देकर राजनीतिक गलियारों में नई कयासबाजी को पनपने का मौका ही दे दिया। शिवपाल सिंह यादव भी अखिलेश के साथ खड़े नहीं हुए। वह अपनी सीट के पास खड़े रहे जबकि वहीं उनके बगल में सपा विधायक मनोज पारस विरोध प्रदर्शन करते रहे।
राजभर के बोल से नए सियासी समीकरण के संकेत
विधानसभा चुनाव के नतीजे के तकरीबन 60 दिन बाद सुभासपा प्रमुख ओम प्रकाश राजभर ने अखिलेश यादव पर हमला बोल सबको हैरत में डाल दिया है। ऐसा पहली बार हुआ है जब वह अपने नए सियासी साथी अखिलेश यादव के खिलाफ बोले हैं। अब इसे सियासी हलकों में मिशन-2024 की पैंतरेबाजी के रूप में देखा जाने लगा है। निहितार्थ निकाले जा रहे हैं कि क्या लोकसभा चुनावों में ओम प्रकाश राजभर फिर पुराने सियासी गठबंधन की ओर लौटेंगे?
पिछली सरकार में कैबिनेट मंत्री रहते हुए राजभर के तीखे बयानों ने योगी सरकार को परेशान कर रखा था। बात बिगड़ती गई और वह सरकार से बाहर हो गए। विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने छोटे दलों की गोलबंदी से सपा और भाजपा दोनों को अपनी तरफ आकर्षित किया। गठबंधन की गांठ सपा से जुड़ गई। ओम प्रकाश लगातार दावा करते रहे थे कि सपा के गठबंधन से सरकार बनाएंगे। दावा फेल होने के बाद ओम प्रकाश ने पहली बार पैंतरा नहीं बदला है। वह नतीजे आने के बाद ही कहने लगे थे कि उन्हें तो पहले ही चरण के मतदान में हार दिखने लगी थी, लेकिन मतदान समाप्त होने तक वह बोल नहीं सकते थे।