दिल्ली के पॉश इलाके वसंत विहार में मां सहित दो बेटियों की आत्महत्या के मामले में पुलिस जांच में चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं। मां मंजू, बेटी अंकिता और अंशुता पिछले तीन माह से आत्महत्या की तैयारी कर रहे थे। घर को कैसे गैस चैंबर में बदला जाए। यह उन्होंने यूट्यूब से सीखा। इसमें जरूरत का सामान उन्होंने अमेजन वेबसाइट से ऑनलाइन मंगवाया था। पुलिस जांच में सामने आया है कि अंकिता ने अंगीठी, फॉयल पेपर, टेप और अन्य सामान अमेजन से मंगवाया था। इनकी डिलीवरी 19 मई को हुई थी।
सामान आने के बाद अंकिता और उसकी बहन ने घर के हर दरवाजे और खिड़की को फॉयल पेपर और टेप की मदद से बंद कर दिया। जिससे ऑक्सीजन घर के अंदर न आ सके और घर में बनी जहरीली गैस बाहर न जा सके। पुलिस के मुताबिक, घर में बनी मोनोऑक्साइड सहित अन्य जहरीली गैस से तीनों की मौत हुई है। जांच में पता चला है कि कम से कम दो दिन तक घर को गैस चैंबर में बदलने के लिए तैयारी की गई थी। पुलिस ने तीनों शवों का पोस्टमार्टम कराने के बाद परिजनों को सौंप दिया है।
10 पेज का सुसाइड नोट
घर के अंदर-अलग अलग दीवारों पर 10 पेज का सुसाइड नोट मिला है। पहला सुसाइड नोट चेतावनी के तौर पर गेट खोलते ही दिखाई दिया। जिस पर लिखा था कि घर में मोनोऑक्साइड मौजूद है, जिससे लाइट या मचिस जलाने पर आग लग सकती है। पुलिस ने इस चेतावनी नोट को देखते हुए दमकल विभाग को सूचना दी। इसके अलावा घर के अंदर मिले दूसरे नोट में ज्यादातर पर अंकिता की बुआ के बारे में लिखा गया है। साथ ही आर्थिक तंगी, बीमारी, रिश्तेदारों से दूरी और समाज से कटने को आत्महत्या का कारण बताया गया है।
बगल वाला फ्लैट भी खाली कराया
घर से मिले एक सुसाइड नोट में लिखा गया है कि तीन माह पहले ही घर की घरेलू सहायिका को हटा दिया गया था। साथ ही फ्लैट के बगल वाले उनके दूसरे फ्लैट को भी तीन माह पहले ही खाली करवा लिया गया था। सुसाइड नोट के अनुसार यह फ्लैट इसलिए खाली करवाया गया था कि अगर उनके घर में आग लगती है तो दूसरे फ्लैट में रहने वाले किराएदारों की मौत न हो जाए। 19 मई को अंकिता ने आत्महत्या के लिए सामान मंगवाया था और 20 मई को ही दूध वाले को मना कर दिया था।
घरेलू सहायिका को दे दिया जाए सामान
पड़ोसियों ने बताया कि अंकिता ऑनलाइन कुछ काम करती थी, जिससे कुछ पैसे उसे मिल जाया करते थे। लेकिन इससे परिवार का गुजारा नहीं चल पा रहा था। ऐसे में परिवार के यहां काम करने वाली घरेलू सहायिका भी उनकी मदद कर दिया करती थी। यही वजह है कि एक सुसाइड नोट में घरेलू सहायिका कमला का नाम भी लिखा है। इसमें बताया गया है कि उनकी मौत के बाद घर में मौजूद जरूरत का सारा सामान कमला को दे दिया जाए। अगर वह सामान न ले तो यह सामान किसी भी गरीब व्यक्ति को जो इस्तेमाल कर सके उसे दे दिया जाए।
मां और एक बेटी थी बीमार
पिछले करीब डेढ़ साल से मंजू बीमारी थी और वह बिस्तर से खड़ी तक नहीं हो पाती थी। मंजू बिस्तर पर ही दैनिक कार्य करती थी। इसके अलावा अंशुता की भी तबीयत खराब चल रही थी। मां और अंशुता की दवाइयों के लिए भी अंकिता के पास पैसे नहीं बचे थे।
उधार मिलना तक बंद हो गया था
पुलिस की जांच में घर के अंदर खाने का कोई भी सामान नहीं मिला है। पूछताछ में सामने आया है कि परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत ज्यादा खराब थी। खाने-पीने के लिए सामान परिवार दुकान से उधार लेता था, लेकिन उधारी बढ़ जाने के चलते दुकानदार ने उन्हें उधार देना बंद कर दिया था। पड़ोसियों ने बताया कि पिछले चार-पांच दिनों से किसी ने भी उन्हें घर से बाहर निकलते नहीं देखा था।
मैनपुरी का रहने वाला था परिवार
पुलिस अधिकारी ने बताया कि मंजू के पति उमेश मूलत: मैनपुरी जिले के किसनी तहसील के गांव अर्जुनपुर के रहने वाले थे। वह 1979 में परिवार के साथ दिल्ली आ गए थे। शुरू में कई जगह किराए पर रहने के बाद 1994 में मंजू की मां ने वसंत विहार का घर उन्हें दे दिया और पूरा परिवार वहां शिफ्ट हो गया था। पहले वह गांव आते-जाते रहते थे लेकिन 2017 में उन्होंने 15 लाख रुपये में गांव का पुश्तैनी घर व खेत एक व्यक्ति को बेच दिया था। उसके बाद से उन्होंने गांव जाना भी बंद कर दिया था।
कोरोना काल में खराब हुई आर्थिक स्थिति
पड़ोसियों ने बताया कि उमेश दिल्ली में लंबे समय से एक सीए के साथ काम कर रहे थे। वह अपनी दोनों बेटियों को भी सीए बनाना चाहते थे। इसके लिए उन्हें कोचिंग भी करवाई थी। लेकिन 2021 में कोरोना से उमेश की मौत के बाद उनका पूरा परिवार अवसाद में आ गया था। पड़ोसियों ने बताया कि कोरोना के दौरान परिवार की आर्थिक स्थिति खराब हो गई थी। पड़ोसियों ने चंदा जमा करके उमेश का अंतिम संस्कार कराया था और अंकिता ने उनके शव को मुखाग्नि दी थी।