कांग्रेस के चिंतन शिविर के बाद सीएम अशोक गहलोत मजबूत बनकर उभरे हैं। राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023 का चुनाव गहलोत के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा। चिंतन शिविर में पार्टी आलाकमान ने सचिन पायलट की भूमिका को लेकर स्पष्ट तौर पर कोई संकेत नहीं दिए हैं। मतलब साफ है कि राजस्थान कांग्रेस में वही होगा जो गहलोत चाहेंगे। राजस्थान की राजनीति में सचिन पायलट से पहले भी गहलोत कई दिग्गजों को पटखनी दे चुके हैं। प्रदेश की सियासत में सीएम अशोक गहलोत से जो भी उलझा उलझता चला गया। साल 2020 में पायलट की बगावत के समय गहलोत ने सही समय पर संकट को भांपते हुए 109 विधायकों का समर्थन हासिल कर लिया था। परिणाम यह निकला कि पायलट खेमे को सुलह करनी पड़ी। राजस्थान कांग्रेस के अंदर मचे सियासी घमासान में अशोक गहलोत एक बार फिर सचिन पायलट पर भारी पड़ते हुए दिखाई दे रहे हैं।
उलझने वाले नेताओं की लंबी फेहरिस्त
राजस्थान की सियासत में सचिन पायलट कांग्रेस के पहले नेता नहीं है जिन्हें सीएम गहलोत ने रणनीतिक तौर पर मात दी है। पायलट से पहले गहलोत से मात खाने वाले नेताओं की लंबी फेहरिस्त है। राजस्थान में सियासत के बादशाह माने जाने वाले हरदेव जोशी, परसराम मदेरणा, नटवर सिंह, शिवचरण सिंह माथुर और सीपी जोशी समेत तमाम सियासी नेताओं को गहलोत सियासी शिकस्त देने में सफल रहे हैं। राजस्थान में 90 के दशक में कांग्रेस में हरदेव जोशी, परसराम मदेरणा और शिवचरण माथुर जैसे दिग्गजों का वर्चस्व था। दिग्गज जाट नेता परसराम मदेरणा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हुआ करते थे। परसराम मदेरणा के समय कांग्रेस को1990 और 93 में हार का सामना करना पड़ा था। 1998 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 153 सीटें मिली थी। ऐसे में पहला दावा कांग्रेस के दिग्ग्ज नेता परसराम मदेरणा का बना रहा था। दूसरा दावा वरिष्ठ नेता नटवर सिंह का बन रहा था। नटवर सिंह गांधी परिवार के करीबी थे।
परसराम मदेरणा पर सीएम गहलोत पड़ गए भारी
राजस्थान प्रदेश प्रभारी माधवराव सिंधिया, मोहसिना किदवई, गुलाम नबी आजाद और बलराज जाखड़ की एक होटल में बैठक हुई। सभी विधायकों को एक-एक करके तलब किया गया। मुख्यमंत्री किसे बनाया जाए। इस सवाल पर विधायकों से राय ली जा रही थी। विधायकों की पसंद जानने के बाद उन्हें एक लाइन में जवाब दिया जाता। इस दौरान कुछ देर के लिए बलराम जाखड़ होटल से बाहर निकल गए थे। एक मैसेज से दिग्गज जाट नेता परसराम मदेरणा पर सीएम गहलोत भारी पड़ गए। अशोक गहलोत पहली बार 1998 में राजस्थान के मुख्यमंत्री बने।
कांग्रेस चिंतन शिविर के बाद पायलट की बढ़ी बैचेनी
उदयपुर में हुए कांग्रेस के चिंतन शिविर में अशोक गहलोत संग राहुल गांधी का बस में एक ही सीट पर बैठकर जाना सियासी तौर पर सब कुछ बयां कर देता है। चिंतन शिविर के दौरान पार्टी आलाकमान सोनिया गांधी ने गहलोत को तवज्जो दी है। मतलब साफ है कि राजस्थान की राजनीति में गहलोत से बड़ा नेता कोई नहीं है। पायलट की भूमिका को लेकर चिंतन शिविर में एक राय नहीं बन पाई है। राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023 में पायलट की भूमिका क्या रहेगी। इस सवाल का जवाब पार्टी आलाकमान की तरफ से नहीं आया है। सचिन पायलट पहले ही राजस्थान से बाहर जाने से इंकार कर चुके हैं। पायलट समर्थकों की बैचेनी इसलिए ज्यादा बढ़ गई है कि बगावत के बाद से ही सचिन पायलट बिना किसी पद के हैं। पहले पायलट के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाए जाने की चर्चा थी। लेकिन गहलोत के करीबी गोविंद सिंह डोटासरा प्रदेश अध्यक्ष का पद छोड़ने के लिए तैयार नहीं है।