यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बीच अफगानिस्तान में हुआ तख्तापलट भी चर्चा में आ गया है। जानकार यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमीर जेलेंस्की और अफगानिस्तान के प्रमुख रहे अशरफ गनी की तुलना कर रहे हैं। साथ ही यह माना जा रहा है कि यूक्रेन के प्रयासों का पश्चिमी नेताओं पर खासा असर पड़ा है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने फरवरी के अंतिम सप्ताह में यूक्रेन के खिलाफ सैन्य कार्रवाई का ऐलान कर दिया था।
समाचार एजेंसी एएनआई के अनुसार, अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टीट्यूट के माइकल रुबिन कहते हैं कि यूक्रेन और उसकी कार्रवाई ने पश्चिम देशों की सोच पर जिस तरह से कब्जा किया है, वैसा अफगानिस्तान ने कभी नहीं किया। क्योंकि पश्चिमी देशों के राजनेता जानते हैं कि नदारद रहने के बजाए जेलेंस्की के साथ नजर आने में ज्यादा फायदा है।
तालिबान की बढ़ती रफ्तार के बाद अफगान के पूर्व राष्ट्रपति अशरफ गनी ने अपने देश के लोगों को उनके हाल पर छोड़कर जाने का फैसला किया था। वहीं, इससे उलट जेलेंस्की रूस के सामने चुनौतियां पेश कर रहे हैं।
खास बात है कि अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन के प्रशासन ने शुरुआत में जेलेंस्की के सरेंडर करने की सलाह दी थी। हालांकि, यूक्रेन के राष्ट्रपति ने अपने नेतृत्व का प्रदर्शन किया। रुबिन के अनुसार, अगर जेलेंस्की दूसरा रास्ता चुन लेते, तो उदार व्यवस्था के लिए परिणाम बेहद खराब हो सकते थे।
उन्होंने तर्क दिया कि ‘गनी, जेलेंस्की नहीं थे।’ सालों तक कई अमेरिका प्रशासनों ने उन्हें समझौता करने के लिए मनाया, लेकिन गनी ने शुरुआत में विरोध किया और फिर आधी रात में काबुल को तालिबान के हाथ में सौंपकर चले गए। खबर है कि गनी फिलहाल संयुक्त अरब अमीरात में हैं।
जानकार ने कहा, ‘बाइडन शायद अफगानिस्तान को अपने पीछे रखना, बदनाम करना और उनके पूर्व राष्ट्रपति के कामों को लेकर अफगानों पर कलंक लगाना चाह रहे थे, लेकिन असलियत यह है कि कई अफगानों ने कभी जंग छोड़ी ही नहीं।’
रुबिन का मानना है कि भले ही बाइडन यह न माने की उनका वापसी गलती थी, लेकिन ऐसा फैसला लेने का समय गलत था। तालिबान से जारी जंग के बीच 20 सालों बाद अमेरिका सेना को वापस बुला लिया था। उन्होंने कहा, ‘अगर अमेरिका सर्दियों तक इंतजार करता, तो शायद इससे अफगानों को पाकिस्तान के समर्थन वाले समूह से लड़ने के लिए तैयार होने का मौका मिल सकता था।’