मलेरिया की दवा कैंसर के इलाज में अहम भूमिका निभा सकती है। जी हां, आपने सही सुना। एक नए अध्ययन में दावा किया गया है कि मलेरिया की ‘हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन’ नामक दवा उन सुराखों को बंद करती है, जो सिर एवं गले के कैंसर में कीमोथैरेपी में काम आने वाली दवा सिस्प्लैटिन के लिए अड़चनें पैदा करते हैं। साथ ही यह पशु मॉडल्स में सिस्प्लैटिन के ट्यूमर मारने वाले इफेक्ट्स को बनाए रखती है।
हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन एक मलेरिया रोधी दवा है, जो लाइसोसोमल (झिल्ली-बद्ध कोशिका अंगक) के फंक्शन को रोकती है।
यह शोध यूनिवर्सिटी ऑफ पिट्सबर्ग और गैर लाभकारी संस्था यूनिवर्सिटी ऑफ पिट्सबर्ग मेडिकल सेंटर (यूपीएमसी) के वैज्ञानिकों ने किया है। इस अध्ययन के नतीजे नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित हुए हैं। वैज्ञानिकों ने अपने निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए मुर्गियों के अंडों एवं चुहिया पर दवा का अध्ययन किया था।
कई बार नाकाम रहती है कीमोथेरेपी
यूपीएमसी हिलमैन कैंसर सेंटर में सिर और गले के सर्जन एवं शोध के सह-वरिष्ठ लेखक उमामहेश्वर दुवूरी ने कहा कि मैं सिर और गले के कैंसर के मरीजों की देखभाल करते वक्त अक्सर देखता हूं कि कीमोथेरेपी नाकाम रहती है।
सिस्प्लैटिन कीमोथैरेपी के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण दवा है लेकिन सिस्प्लैटिन के लिए ट्यूमर प्रतिरोध एक बड़ी समस्या है। उन्होंने कहा कि मेरी लैब प्रतिरोधक क्षमता के मैकेनिज्म को समझने में रुचि रखती है ताकि हम इन मरीजों के इलाज के लिए बेहतर तरीके तलाश सकें।
टीएमईएम16ए प्रोटीन जीने की संभावना घटाता
पिछले शोध से पता चला है कि टीएमईएम16ए नामक एक प्रोटीन का रोगी के ट्यूमर में सिस्प्लैटिन की प्रतिरोधक क्षमता से संबंध होता है। यह प्रोटीन करीब 30 फीसदी सिर एवं गले के कैंसर में देखने को मिलता है और इसे जिंदा रहने की संभावना के कम होने से जोड़कर भी देखा जाता है।
ये हैं लक्षण
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर आप लंबे समय से खांसी से परेशान हैं और काफी इलाज करने के बाद भी खांसी नहीं जा रही है। तो आप सावधान हो जाएं और इसे हल्के में न लें यह गले के कैंसर के शुरुआती लक्षण हो सकते हैं।