यूपी विधानसभा चुनाव में भाजपा और समाजवादी पार्टी के पुराने और नए सहयोगियों की ताकत की असली परीक्षा अंतिम दो चरणों के चुनाव में ही होगी। यही दोनों चरण तय करेंगे कि ओबीसी वोटरों का साथ इस बार किसे मिल रहा है। इन दो चरणों की पहचान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इलाकों के रूप में भी है। छठे चरण में गुरुवार को सीएम योगी के जिले गोरखपुर और उससे सटी सीटों पर चुनाव होना है। सातवें और अंतिम चरण में प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी और उसके आसपास के जिलों में सात मार्च को वोटिंग होगी।
पूर्वांचल कहे जाने वाले इस इलाके में भाजपा के लिए बड़ी चुनौती इसलिए भी है कि उसके सहयोगी रहे सुभासपा प्रमुख ओमप्रकाश राजभर के अलावा बीजेपी छोड़कर सपा में जाने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य और दारा सिंह चौहान जैसे कद्दावर लोगों का भी यही इलाका है। भाजपा के सहयोगी अपना दल और निषाद पार्टी भी इसी इलाके की ज्यादातर सीटों पर लड़ रहे हैं। इसलिए उनकी असली ताकत का परीक्षण भी अगले दो चरणों में होगा।
केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल के नेतृत्व वाली अपना दल 17 और संजय निषाद के नेतृत्व वाली निषाद पार्टी 16 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। दोनों पार्टियां प्रदेश की प्रमुख पिछड़ी जातियों कुर्मी और निषाद में अपना दबदबा मानती है। 2017 के चुनावों में भाजपा ने अपना दल को केवल 11 सीटें दी थीं।
भाजपा ने उसका साथ छोड़ने वाले ओमप्रकाश राजभर और स्वामी प्रसाद मौर्य को राजनीतिक सबक सिखाने के लिए बड़ा दांव चला है। दोनों नेताओं का मानना है कि उनकी जातियों राजभर और मौर्य समाज का वर्चस्व है और मजबूत पकड़ बनी हुई है। इस दावे की हवा निकालने के लिए ही भाजपा ने उन्हीं की जातियों के नेताओं को मैदान में उतार दिया है।
जहूराबाद में ओपी राजभर के खिलाफ कालीचरण राजभर को मैदान में उतारा है। कालीचरण ने कुछ समय पहले ही सपा को छोड़ दिया था। वहीं कांग्रेस के नेता रहे आरपीएन सिंह को अपने पाले में करने के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य के सामने पडरौना से उतार दिया। इसका असर रहा कि स्वामी प्रसाद पडरौना छोड़कर पड़ोसी फाजिलनगर से मैदान में उतरे हैं।
अंतिम चरण का चुनाव भाजपा के लिए कितना महत्वपूर्ण है इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि प्रधानमंत्री मोदी चुनाव प्रचार के आखिरी दो दिन वाराणसी में ही बिताने वाले हैं। हालांकि उन्होंने 2017 में भी यही किया था।
अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी तो भी इस इलाकों में भारी सफलता की उम्मीद है। उनका मानना है कि अपने मूल मुस्लिम और यादव वोटों के साथ ही अन्य पिछड़े समुदाय का वोट उन्हें भारी जीत दिलाएगा। अपने इसी लक्ष्य को पूरा करने के लिए अखिलेश यादव ने स्वामी प्रसाद मौर्य और दारा सिंह चौहान सहित कई ओबीसी नेताओं को भाजपा से अपने पाले में किया है। यह दोनों नेता योगी सरकार में मंत्री भी थे।
ज्यादातर विशेषज्ञों का मानना है कि विपक्षी दल के तौर पर अखिलेश यादव ने मायावती की बसपा को काफी पीछे छोड़ दिया है। मायावती की बसपा को फिलहाल जाटव मतदाताओं के एक बड़े हिस्से का समर्थन प्राप्त है।