वर्तमान चुनाव ने उत्तराखंड की भविष्य की राजनीति की झलक भी दिखा दी है। खासकर कांग्रेस के लिए इस चुनाव के नतीजे काफी महत्वपूर्ण होने जा रहे हैं। हर विधानसभा चुनाव में सरकार बदलने का मिथक यदि इस बार भी कायम रहता है तो कांग्रेस को नई ताकत मिलेगी। यदि यह मिथक टूटता है तो भविष्य में नई चुनौतियों का सामना कांग्रेस को करना पड़ेगा। जिस प्रकार आम आदमी पार्टी, बसपा और यूकेडी ने इस चुनाव में तेवर दिखाए हैं, उससे साफ है कि अगला चुनाव तक तीसरी ताकत बनने का प्रयास कर रहे ये दल और आक्रामक अंदाज अख्तियार करेंगे।
कांग्रेस के रणनीतिकार भी इस पहलू पर गंभीर हैं। एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि, बसपा और आप ने मैदानी जिलों और खासकर शहरों पर ज्यादा फोकस रखा है। हालांकि मतदान के नतीजे तो 10 मार्च को आने हैं, लेकिन कुछ सीटों पर आप, बसपा और निर्दलीय अच्छा प्रदर्शन करते हुए नजर आए हैं। बदले हालात में कांग्रेस को अपने सांगठनिक ढांचे में बूथ स्तर तक आमूलचूल संशोधन की जरूरत है। जिस प्रकार भाजपा ने पन्ना प्रमुख का फार्मूला लागू किया है, उसी प्रकार हर बूथ पर ऐसी टीम तैयार करनी होगी, जो उस क्षेत्र के प्रत्येक मतदाता के संपर्क में रहे।
संगठन के लिहाज कांग्रेस पिछले पांच साल से सहज स्थिति में नहीं है। वर्ष 2017 में नए प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह अपनी टीम को तीन साल बाद जाकर बना पाए थे। उससे पहले तक पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय की टीम ही कागजों में दर्ज रही। बीते साल जुलाई में नए अध्यक्ष बने गणेश गोदियाल भी प्रीतम की टीम की भरोसे काम कर रहे हैं। हालांकि चुनाव में टिकट वितरण की वजह से उपजे असंतोष को थामने के लिए गोदियाल ने हाल करीब 200 नए पदाधिकारी बनाए हैं। लेकिन चुनावी पद होने से उनका संगठन को जमीनी स्तर पर लाभ मिल पाएगा, इसे लेकर कांग्रेसी खुद भी पूरी तरह आश्वस्त नहीं हैं।
उत्तराखंड के लोग प्रबुद्ध और संवेदनशील हैं। कांग्रेस से उनका लगाव सदा से रहा है। कांग्रेस का वोट प्रतिशत लगातार बढ़ता जा रहा है। वर्ष 2017 में भले ही कांग्रेस की सीट कम हो गई थी, लेकिन प्रचंड मोदी लहर के बावजूद कांग्रेस का अपना मत प्रतिशत मामूली सा प्रभावित हुआ। कोई दूसरा दल कांग्रेस का विकल्प नहीं बन सकता। संगठन के स्तर पर पार्टी ढांचे को मजबूत किया जा रहा है। मतदान के बाद नया बदलाव साफ नजर भी आएगा। – मथुरादत्त जोशी, प्रदेश महामंत्री-संगठन