बीते सालों से ताइवान के प्रति चीन की आक्रामकता बढ़ी है। चीन ताइवान को कूटनीतिक स्तर पर अलग-थलग करने की कोशिश में है। चीन के साथ संघर्ष की आशंका के बीच ताइवान अपनी सुरक्षा बढ़ा रहा है। उसका सबसे करीबी सहयोगी अमेरिका है।ताइवान के उपराष्ट्रपति लाइ चिंग ते उर्फ विलियम लाई अगले हफ्ते अमेरिका जाएंगे। वह होंडूरास की अपनी यात्रा के दौरान अमेरिका जाकर वहां नेताओं से बातचीत करेंगे। 20 जनवरी को राष्ट्रपति के दफ्तर ने यह जानकारी दी। ताइवान और चीन के बीच बढ़े तनाव के बीच विलियम लाई की यह यात्रा अहम होगी। चीन हमेशा से ही अपनी वन चाइना पॉलिसी के तहत ताइवानी लीडरों के अमेरिका जाने पर सख्त आपत्ति जताता आया है।
क्या है चीन और ताइवान के संबंधों का इतिहास?
चीन, ताइवान को अपना भूभाग मानता है। दोनों देशों के बंटवारे का अतीत चीनी गृह युद्ध से जुड़ा है। गृह युद्ध में माओ की कम्युनिस्ट पार्टी चीन की तत्कालीन सत्ताधारी क्यूमिनतांग पार्टी और उसके लीडर च्यांग काई शेक से लड़ रही थी। 1949 में कम्युनिस्ट धड़े को जीत की तरफ बढ़ते देखकर च्यांग काई शेक चीन की मुख्यभूमि से भागकर ताइवान आ गए थे।
उन्होंने ताइवान का नाम रिपब्लिक ऑफ चाइना रखा। च्यांग का दावा था कि वह चीन के वैध शासक हैं। उधर कम्युनिस्ट पार्टी ने गृह युद्ध में अपनी जीत के बाद सत्ता संभाली और देश का नाम रखा, पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना। ताइवान में लोकतंत्र मजबूत हुआ आगे चलकर ताइवान में लोकतंत्र की मांग उठी।
1996 में यहां पहली बार निष्पक्ष चुनाव हुए। साल 2000 में हुए चुनाव में क्यूमिनतांग पार्टी की जगह डेमोक्रैटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (डीपीपी) सत्ता में आई। क्यूमिनतांग पार्टी जहां चीन और ताइवान के एकीकरण की समर्थक थी, वहीं डीपीपी ताइवान को स्वतंत्र और संप्रभु देश मानती थी। वह ताइवान और चीन के एकीकरण का समर्थन नहीं करती थी। आगे के सालों में ताइवान में अलग अस्तित्व और स्वतंत्र पहचान का मुद्दा जोर पकड़ता गया। वन चाइना पॉलिसी चीन की कम्युनिस्ट सरकार ताइवान के इस रुख का विरोध करती है। अपनी वन चाइना पॉलिसीके तहत चीन कहता है कि ताइवान के किसी और देश के साथ कूटनीतिक संबंध नहीं हो सकते हैं। ताइवान इसका विरोध करता है।
ताइवान की सुरक्षा चिंताएं बढ़ीं
वहां 2016 और 2020 के राष्ट्रपति चुनावों में भी चीन का मुद्दा सबसे अहम रहा था। इन चुनावों में डीपीपी को मिली जीत को ताइवान के स्वतंत्र अस्तित्व पर जनता की मुहर के तौर पर देखा गया। अमेरिका-ताइवान के रिश्ते ताइवान में मजबूत हो रही स्वतंत्र अस्तित्व की मांगों के बीच पिछले कुछ सालों से चीन लगातार दबाव बढ़ा रहा है। ताइवान का कहना है कि चीन आक्रामकता दिखाकर और शक्ति प्रदर्शन करके उससे अपनी संप्रभुता मनवाना चाहता है। चीन की बढ़ती आक्रामकता के चलते ताइवान की सुरक्षा चिंताएं बढ़ी हैं।
अमेरिका से मजबूत रिश्ते चाहता है ताइवान
अनुमान है कि उपराष्ट्रपति विलियम लाई सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं पर बातचीत के लिए ही अमेरिका जा रहे हैं। ताइवान और अमेरिका के बीच आधिकारिक कूटनीतिक रिश्ते नहीं हैं। मगर अमेरिका उसका सबसे मजबूत सहयोगी है। वह ताइवान को हथियारों की भी आपूर्ति करता है। चीन, अमेरिका और ताइवान के रिश्तों का विरोधी है। वह ताइवान को अपने और अमेरिका के बीच का सबसे संवेदनशील मुद्दा बताता है। होंडूरास और ताइवान के संबंध चीन की वन चाइना पॉलिसी के चलते केवल 14 देशों के ताइवान के साथ आधिकारिक संबंध हैं।
दुनिया के देशों से संबंध बढ़ा रहा ताइवान
होंडूरास इनमें से एक है। हालांकि यह रिश्ता अभी नाजुक स्थिति में है। इसी के मद्देनजर विलियम लाई होंडूरास की यात्रा पर जा रहे हैं। वह होंडूरास के नए राष्ट्रपति सिओमारा कास्त्रो के शपथ ग्रहण कार्यक्रम में शरीक होंगे। ताइवान सरकार ने कहा है कि वह कास्त्रो के साथ मिलकर होंडूरास के साथ अपने संबंध प्रगाढ़ करना चाहता है। मगर आशंका है कि कास्त्रो शायद ताइवान का साथ छोड़कर चीन के खेमे में चले जाएं।
निकारागुआ ने ताइवान ने रिश्ते तोड़ लिए थे चीन ताइवान के सीमित कूटनीतिक संबंधों को खत्म करवाने की कोशिश कर रहा है। उसने कहा है कि वह ताइवान के कूटनीतिक सहयोगियों की संख्या शून्य करना चाहता है। दिसंबर 2021 में निकारागुआ ने ताइवान के साथ अपने कूटनीतिक रिश्ते तोड़ लिए थे। इसके बाद जनवरी 2022 की शुरुआत में चीन ने निकारागुआ में अपना दूतावास खोल दिया। होंडूरास के राष्ट्रपति सिओमारा कास्त्रो ने भी ताइवान से रिश्ते तोड़कर चीन के साथ जाने के संकेत दिए हैं।