लिवर कैंसर के इलाज की दिशा में वैज्ञानिकों को बड़ी कामयाबी मिली है। स्वीडन के वैज्ञानिकों का दावा है कि उन्होंने लिवर कैंसर के लिए जिम्मेदार प्रोटीन की खोज कर ली है। इससे भविष्य में कैंसर का बेहतर इलाज हो सकेगा। साथ ही इसकी पहचान भी बेहतर तरीके से हो सकेगी। यह अध्ययन ब्रिटिश मेडिकल एसोसिएशन (बीएमजे) के जर्नल गट में प्रकाशित हुआ है।
स्वीडन की मेडिकल यूनिवर्सिटी करोलिंस्का इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं के मुताबिक, लिवर यानी गुर्दे से संबंधित कैंसर में एक प्रोटीन और एक आईएनसी-आरएनए मॉलीक्यूल की पहचान कर ली है। इनकी तादाद बढ़ाने से ट्यूमर सेल में जमा चर्बी कम हो जाती है।
इससे ट्यूमर की कोशिकाओं यानी ट्यूमर सेल्स में विभाजन होता है और कोशिकाएं घटती जाती हैं। इसके बाद ये ट्यूमर सेल खत्म हो जाते हैं। करोलिंस्का इंस्टीट्यूट में माइक्रोबायोलॉजी, ट्यूमर और सेल बायोलॉजी की शोधकर्ता क्लाडिया कटर का कहना है कि हमारे जीनोम हमारी कोशिकाओं को निर्देश देते हैं।
इससे हर एक प्रकार की कोशिका के लिए एक हाई लेवल वर्क करना तय होता है। इस मैसेज को बाहर दो प्रकार के आरएनए मॉलीक्यूल के जरिए भेजा जाता है। अध्ययन में पाया गया कि ऐसे बहुत से प्रोटीन बिना कूट संदेश वाले आरएनए से प्रतिक्रिया करते हैं, जिन्हें हम आइएनसी-आरएनए भी कहते हैं।
ऐसे किया शोध
अध्ययन के दौरान लिवर कैंसर के मरीज से टिशू लिया गया। इसकी विशिष्ट जोड़ी प्रोटीन वाले आईएनए (सीसीटी3) और आईएनसी-आरएनए मॉलीक्यूल बनाकर एडवांस सीआरआईएसपीआर टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करने पर पाया कि दोनों तरह के आरएनए कम हो रहे थे। साथ ही उनका प्रोटीन भी कम हो रहा था। ये प्रोटीन ही कैंसर कोशिकाओं को प्रभावित करते हैं।