पैनिक अटैक यानी अज्ञात भय और तनाव के कारण पड़ने वाला दौरा। आधुनिक जीवनशैली का जरूरी हिस्सा बन चुका है तनाव। कोरोना के बाद, बड़ों से लेकर बच्चों में तनाव बढ़ा है। खासकर, ठंड में अवसाद से खुद को बचाना जरूरी है। बता रहे हैं विवेक शुक्ला-
पैनिक अटैक एक मनोरोग है, जिसमें व्यक्ति ज्ञात या फिर अज्ञात कारणों से अचानक भयग्रस्त हो जाता है। वह अत्यधिक चिंतित हो उठता है। इस बेहद नकारात्मक मनोदशा को पैनिक अटैक (भय का दौरा) कहा जाता है। इसे तनावजनित अटैक भी कहते हैं। बीते कुछ समय में दुनियाभर में पैनिक अटैक के मामले बढ़े हैं। कोरोना वायरस और उसके बाद पैदा हुई स्थितियों के कारण बड़ी संख्या में लोग मुश्किल हालातों से गुजरे हैं। जो लोग कोविड-19 की गंभीर अवस्था से गुजर चुके हैं या फिर जिन्हें हॉस्पिटल में या जीवनरक्षक उपकरणों पर रहना पड़ा था, ऐसे लोगों में भी पैनिक अटैक के मामले सामने आ रहे हैं। तल्ख अनुभव, डर और भविष्य के लिए असुरक्षा का भाव इसके कारण हो सकते हैं।
पैनिक अटैक और फोबिया
फोबिया में व्यक्ति ऊल-जलूल विचारों के वशीभूत होकर किसी खास व्यक्ति, वस्तु, परिस्थिति और परिवेश से बहुत ज्यादा डर जाता है। फोबिया का कोई तार्किक आधार नहीं होता। हालांकि, फोबिया में पैनिक अटैक के लक्षण दिख सकते हैं, लेकिन पैनिक अटैक किसी खास चीज के डर से जुड़ा नहीं है। इसका एक कारण अवसाद भी है। पैनिक अटैक अचानक बने हालात से भी हो सकता है।
क्या हैं कारण
शारीरिक कारण
कुछ रोग भी पैनिक अटैक का कारण बन सकते हैं। मसलन, हार्ट अटैक या हृदय रोगों से जुड़ी समस्याएं और कैंसर आदि में पैनिक अटैक की आशंकाएं बढ़ जाती हैं। इसके अलावा, थायरॉएड की बीमारी के कारण भी ऐसा हो सकता है।
मानसिक कारण
इसके तहत उन मनोविकारों, परिवेश और हालातों को शामिल किया जाता है, जिसके कारण मन पर भय हावी हो जाता है। वैवाहिक जीवन में कलह, तलाक होना, किसी करीबी की मौत होना, नौकरी छूट जाना या फिर छूट जाने का भय रहना या आर्थिक नुकसान, पैनिक अटैक का कारण बन सकते हैं। ऐसे लोग, जिन्हें जीवन में बहुत दुख झेलने पड़े हैं या बचपन की कुछ ऐसी कड़वी बातें हैं, जो डराती हैं या असुरक्षा का एहसास कराती हैं, उनमें इन कारणों से भी पैनिक अटैक का खतरा बढ़ जाता है। जिन लोगों को छोटी-छोटी बातों पर बेचैनी होती है, उनमें भी यह खतरा बढ़ जाता है।
सामाजिक कारण
अकेलापन पैनिक अटैक का बड़ा कारण है। अपने मन के भय या दिल की बात को अपनों के सामने न रख पाना, साथ वालों से बातचीत न होना, भविष्य में पैनिक अटैक का कारण बन सकता है।
कुछ लोगों को भीड़, लिफ्ट आदि बंद स्थानों में लंबे समय तक रहने पर भी पैनिक अटैक आ सकता है।
पैनिक अटैक और नर्वस सिस्टम
पैनिक अटैक की समस्या को समझने के लिए तंत्रिका तंत्र (नर्वस सिस्टम) के बारे में जानना जरूरी है। तंत्रिका तंत्र के तीन प्रकार हैं। पहला, केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (सेंट्रल नर्वस सिस्टम)। यह हमारे शरीर के विभिन्न अंगों और उनके संचालन को नियंत्रित करता है।
दूसरा, पैरासिम्पैथेटिक नर्वस सिस्टम। यह सिस्टम हमारे शरीर की असहज क्रियाओं को काबू करने का काम करता है। तीसरा, सिम्पैथेटिक नर्वस सिस्टम, जिस पर मनुष्य का नियंत्रण नहीं होता। जैसे, दिल की धड़कन का चलना, सांस लेना और मुंह में लार आना आदि। पैनिक अटैक के दौरान मस्तिष्क सिम्पैथेटिक नर्वस सिस्टम को सक्रिय करता है, जिससे शरीर में पैनिक अटैक के लक्षण प्रकट होते हैं। मस्तिष्क से सिग्नल मिलने के बाद एड्रिनल ग्लैंड से हार्मोन रिलीज होते हैं। एड्रिनल ग्लैंड, किडनी के पास होता है। सिम्पैथेटिक नर्वस सिस्टम के कारण ही शरीर में विभिन्न प्रकार के लक्षण प्रकट होते हैं।
ऐसे कर सकते हैं बचाव
●सकारात्मक सोच रखें। जहां तक संभव हो, तनावमुक्त रहने का प्रयास करें।
●सामाजिक रूप से सक्रिय रहें।
●संतुलित और स्वास्थ्यकर आहार ग्रहण करें। जंक फूड (जिनमें शुगर या सोडियम ज्यादा पाया जाता है) से परहेज करें। तंत्रिका तंत्र को मजबूत करने के लिए ड्राई फ्रूट, हरी सब्जियां और फल, खासकर आंवला, मौसम्बी, संतरा आदि को शामिल करें।
●नियमित व्यायाम करें। योगासन और प्राणायाम से पैरासिंपैथेटिक नर्वस सिस्टम सशक्त होता है।
●मेडिटेशन करें। नियमित ध्यान करना भयमुक्त और तनावमुक्त रहने में मदद करता है।
●डॉक्टर से परामर्श करने में देरी न करें। अगर किसी कारण भयग्रस्त या असहज महसूस कर रहे हैं, तो मनोरोग विशेषज्ञ या फिर डॉक्टर से परामर्श लें।
ठंड का मौसम और पैनिक अटैक
सीजनल एफेक्टिव डिसऑर्डर
पैनिक अटैक का एक प्रमुख कारण है डिप्रेशन। सर्दियों में डिप्रेशन के मामले बढ़ जाते हैं। इसका कारण यह है कि सर्दियों में, अत्यधिक ठंड पड़ने पर आमतौर पर एक बड़ी संख्या में लोग आउटडोर गतिविधियां, जैसे एक्सरसाइज करना या टहलना, कम कर देते हैं। देर तक सोते रहते हैं। इस कारण उनका मन-मस्तिष्क अन्य ऋतुओं की तुलना में उतना सक्रिय नहीं होता, जितना उसे होना चाहिए। साथ ही सर्दियों में कई दिनों तक मौसम के खराब रहने से अनेक लोगों की कई महत्वपूर्ण योजनाएं स्थगित हो सकती हैं। ऐसी स्थिति में जो अत्यधिक संवेदनशील होते हैं, उनके मनमेंसकारात्मक कम और नकारात्मक विचार ज्यादा आते हैं, जिससे कुछ लोगों में पैनिक अटैक की आशंका बढ़ सकती है।
जब हो जाए पैनिक अटैक
आपके साथ के किसी व्यक्ति को पैनिक अटैक हुआ है, तो उसे सांत्वना दें और उसकी बात को काटें नहीं। उस व्यक्ति को गहरी सांसें लेने व छोड़ने के लिए कहें। अगर ऐसा आपके साथ हुआ है और आप अकेले हैं, तो सबसे पहले किसी सुरक्षित जगह पर ठहर जाएं। शांतचित्त होकर गहरी सांसें लें। नींबू की शिकंजी, कॉफी या ओआरएस लेना बेहतर रहता है। 10-15 मिनट बाद भी हालत नहीं सुधर रही है तो शीघ्र डॉक्टर के पास जाएं।
लक्षणों को जानें
दिल की धड़कन बढ़ना
घबराहट होना
सांस लेने में तकलीफ होना
बीपी बढ़ना
पसीना आना व शरीर में कंपन होना
सिर दर्द और बदन दर्द
शरीर में ठंडी या गर्म लहर महसूस होना
चक्कर आना
उल्टी, गैस या एसिडिटी पैदा होना
मुंह सूखना, जिसके कारण बार-बार पानी पीना
यह सोचना कि मुझे बड़ी बीमारी हुई है
पैर लड़खड़ाना
रोंगटे खड़े होना
मृत्यु निकट महसूस होना आदि।
ऐसे लक्षण होने पर डॉक्टर से मिलना चाहिए।
पैनिक और हार्ट अटैक में अंतर
पैनिक अटैक और हार्ट अटैक के लक्षण काफी हद तक मिलते-जुलते हैं। जैसे, सीने में हल्का दर्द होना, हाथ और पैर में कंपन होना, हाई ब्लड प्रेशर होना, घबराहट महसूस करना, पसीना आना आदि। हार्ट अटैक का खतरा उनमें ज्यादा होता है, जिन्हें हाई बीपी या हृदय से जुड़ी समस्याएं होती हैं। पर, पैनिक अटैक का शिकार हृदय रोगियों समेत बड़े और बच्चे कोई भी हो सकते हैं। डॉक्टर शारीरिक लक्षणों और ईसीजी आदि विभिन्न जांच से पुष्टि करते हैं कि पैनिक अटैक हुआ था या फिर एंजाइना, या हार्ट अटैक या अन्य कोई हृदय रोग। पैनिक अटैक में हृदय रोगों का होना जरूरी नहीं है।
पैनिक अटैक की अवधि
आमतौर पर पैनिक अटैक का तीव्र प्रकोप 15 से 30 मिनट तक जारी रह सकता है। हल्के लक्षण एक घंटे तक भी रह सकते हैं। एक बार पैनिक अटैक हो जाने का डर अगले अटैक का कारण बन सकता है। आमतौर पर एक घंटे में लक्षण दूर हो जाते हैं, पर डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए।
ऐसे लोग रहें ज्यादा सतर्क
उच्च रक्तचाप और अन्य हृदय रोगों के मरीज।
मधुमेह पीड़ित। ऐसे लोगों का ब्लड शुगर लेवल कभी-कभी अचानक नीचे गिरता है या फिर अत्यधिक बढ़ सकता है। इन दोनों ही स्थितियों में पैनिक अटैक की आशंका रहती है।
थायरॉएड के मरीजद
मा के मरीज।
उपचार
शारीरिक स्तर पर इलाज
इसमें शरीर को स्वस्थ रखने के लिए संतुलित आहार और नियमित व्यायाम पर जोर दिया जाता है। ऐसे लोगों को नशीले पदार्थों से दूर रहने की सलाह दी जाती है। साथ ही, मस्तिष्क और नर्वस सिस्टम को ठीक रखने के लिए पर्याप्त नींद लेना जरूरी होता है।
मानसिक कारणों का इलाज
कॉग्निटिव बिहेविरल थेरेपी (सीबीटी) थेरेपी के जरिये विशेषज्ञ डॉक्टर, पीड़ित व्यक्ति के सोचने और उसके व्यवहार के ढंग को बातचीत के माध्यम से सुधारने का प्रयास करते हैं।
माइंडफुलनेस बिहेविरल थेरेपी (एमबीटी)
जो लोग अतीत की घटनाओं में ही खोए रहते हैं या भावी चिंताओं में, उनके लिए इस थेरेपी का सहारा लिया जाता है।
हिप्नोथेरेपी
इसमें मन को शांत करने के लिए व्यक्ति को सम्मोहित किया जाता है और सुझाव दिया जाता है।
ऑटो सजेशन
इसमें व्यक्ति मन शांत करने के लिए स्वयं को ही सुझाव देता है कि मैं ठीक हो रहा हूं। मेरी स्थिति सुधर रही है और मैं किसी भी स्थिति में परेशान नहीं होऊंगा। इसे पॉजिटिव ऑटो सजेशन भी कहा जाता है।
एंटीडिप्रेशेंट मेडिसिन
तनावकारक हार्मोन्स को नियंत्रित करने के लिए डॉक्टर एंट्री-डिप्रेशेंट दवाएं देते हैं।
सामाजिक कारण
दूसरों की मदद करें। अपनी बात कहें। सामाजिक कार्यों में सक्रिय रहें। दूसरों से मिले-जुलें।
(डॉ. शौनक अजिंक्य, वरिष्ठ मनोरोग विशेषज्ञ, कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी, हॉस्पिटल, मुंबई। डॉ. गौरव गुप्ता, वरिष्ठ मनोरोग विशेषज्ञ, तुलसी हेल्थ केयर, गुरुग्राम। डॉ.संतोष कुमार यादव, फिजिशियन, एपेक्स हॉस्पिटल, वाराणसी।)