पांच साल पहले अखिलेश यादव से अलग हुए शिवपाल यादव एक बार फिर उनके हमराह हो गए दिखते हैं। उनके भतीजे व सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने उनसे बात करने उनके घर तक गए और उनकी पार्टी प्रसपा के साथ गठबंधन का ऐलान कर दिया। अब प्रसपा को सपा मुखिया कितनी सीटें देंगे, यह बहुत महत्वपूर्ण है। इसकी वजह यह है कि चुनाव मिलकर लड़ने की बात पहले से भी होती रही है लेकिन दोनों के बीच सीटों की तादाद को लेकर मतभेद थे।
बाहरी चुनौती से निपटने को अखिलेश ने बदली रणनीति
छोटे छोटे दलों का बड़ा कुनबा बना कर भाजपा को चुनौती दे रहे अखिलेश यादव ने अपने परिवार की एका को भी मजबूत करना जरूरी समझा। 2017 में पार्टी की हार में संगठन व परिवार की आंतरिक कलह भी बड़ा कारण थी। असल में शिवपाल की चिंता है सपा छोड़ कर उनके साथ संघर्ष करने वाले नेताओं को भी विलय या गठबंधन की सूरत में सम्मान मिले। जबकि सपा मुखिया की चिंता है कि यह सब उनके प्रति भी प्रतिबद्ध रहें साथ ही पार्टी में आंतरिक समीकरण न बदलें।
प्रसपा कितनी सीट चाहती है। इसके जवाब में शिवपाल ने सार्वजनिक तौर पर कहा था कि सपा को बनाने आगे बढ़ाने में उनका योगदान नेताजी (मुलायम सिंह यादव) के बाद सबसे ज्यादा है। इस हिसाब से उन्हें कम से कम 100 सीटें तो मिलनी चाहिए। इसमें वह पचास सीट जीत लाएंगे। शिवपाल यादव ने गठबंधन के लिए अपनी रथयात्रा भी बीच में ही छोड़ दी। गुरुवार की मुलाकात के बाद अब सीटों की मांग कम हो सकती है। माना जा रहा है कि सपा शिवपाल यादव, उनके बेटे आदित्ययादव, व कुछ अन्य समर्थकों को टिकट देगी। इससे सपा के लिए यादव वोट बैंक में सेंध लगने की संभावना खत्म होगी। परिवार की एका का दोनों के समर्थकों व वोटरों में सकारात्मक संदेश जाएगा। यही कारण है कि जब चाचा भतीजे में मुलाकात की खबर फैली तो दोनों दलों के कार्यकर्ता ने मिलकर नारेबाजी कर खुशी जाहिर की।