ल्ली दंगों के मामलों की सुनवाई के दौरान अभियोजक द्वारा बीते 10 महीने तक दिल्ली की एक अदालत में पेश नहीं होने का जिक्र करते हुए मजिस्ट्रेट कोर्ट ने राज्य सरकार पर जुर्माना लगाया है। साथ ही, अभियोजक पर अदालत खर्च लगाने के लिए उनकी जवाबेदही तय करने को लेकर पुलिस कमिश्नर को जांच करने और जुर्माने की राशि वेतन से काटने का आदेश दिया।
मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट (सीएमएम) अरुण कुमार गर्ग ने विशेष लोक अभियोजक (एसपीपी) की अनुपस्थित के चलते फरवरी 2020 के साम्प्रदायिक दंगों के एक मामले में सुनवाई के दौरान स्थगन अनुरोध के बाद 3,000 रुपये का जुर्माना लगाया।
न्यायाधीश ने स्थगन के लिए अनुरोध स्वीकार करते हुए कहा कि मामले में 30 जनवरी 2021 को आरोपपत्र दाखिल किए जाने के बाद से एसपीपी एक बार भी अदालत में पेश नहीं हुए हैं। उन्होंने 10 दिसंबर के आदेश में कहा कि स्थगन के लिए अनुरोध स्वीकार करते हुए राज्य को अदालत में 3,000 रुपये जमा करने का आदेश दिया जाता है।
न्यायाधीश ने कहा कि अदालत यह नहीं चाहती कि खर्च का बोझ सरकारी खजाने पर पड़े और इसलिए मैं दिल्ली के पुलिस कमिश्नर को अदालत खर्च की जवाबदेही तय करने के लिए जांच करने और यह रकम इसके लिए जिम्मेदार रहे व्यक्ति के वेतन से कटौती करने का आदेश देता हूं।
सीएमएम गर्ग ने निर्देश दिया कि अदालत के आदेश की कॉपी डीसीपी (उत्तर-पूर्व जिला) और पुलिस कमिश्नर को अभियोजक की उपस्थिति सुनिश्चित करने के निर्देश के साथ भेजी जाए।
इससे एक दिन पहले, दंगों के मामलों की सुनवाई कर रही एक अदालत ने एसपीपी की अनुपस्थिति के चलते इन मामलों के निस्तारण में विलंब पर चिंता प्रकट की थी। साथ ही, दिल्ली पुलिस को राज्य का प्रतिनिधित्व करने के लिए और अभियेाजक नियुक्त करने का निर्देश दिया था।