बाहर के समान ही घर के भीतर का प्रदूषण भी सेहत को नुकसान पहुंचाता है। सच यही है कि बंद दरवाजों के भीतर की हवा भी कम प्रदूषित नहीं है। खासतौर पर सांस की समस्याओं से जूझ रहे लोगों के लिए घर के अंदर के प्रदूषण को काबू में रखना बेहद जरूरी हो गया है।
लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ के अनुसार, भारत में पिछले दो दशकों में इनडोर वायु प्रदूषण के कारण होने वाली मौतों की संख्या तेजी से बढ़ी है। बाहर की तरह घरों के भीतर की हवा की गुणवत्ता भी दिनोंदिन खराब हो रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) की एक रिपोर्ट के अनुसार, घर के अंदर मौजूद प्रदूषक तत्वों के कारण दुनियाभर में हर साल 80 लाख लोगों की सेहत पर असर पड़ता है। इतना ही नहीं, प्रदूषण से हो रही मौतों में आधे से ज्यादा मामलों में इनडोर प्रदूषण की भूमिका देखी गई है। कई मामलों में, घर के भीतर की प्रदूषित हवा सेहत पर ज्यादा बुरा असर डालती नजर आ रही है।
इनडोर प्रदूषण कई कारकों पर निर्भर करता है। घर में उचित वेंटिलेशन का इस्तेमाल इसका एक बड़ा कारण है। खासकर गांवों में, जहां लकड़ी के चूल्हे या कोयले का इस्तेमाल होता है, उससे भी सेहत पर बुरा असर पड़ता है। इसके अलावा, भवन आदि के निर्माण कार्य, पेंट, साफ-सफाई के उत्पाद, गैस स्टोव व मोमबत्ती से निकलने वाला धुआं आदि कई ऐसे कारक हैं, जो धूल, हानिकारक गैसें और टॉक्सिक रसायन उत्पन्न करते हैं।
इसके साथ ही, कॉकरोच, फफूंद, दीमक आदि के कारण भी कई तरह के संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। हर समय बनी रहने वाली एलर्जी में कॉकरोच एलर्जन की बड़ी भूमिका होती है। घरों की साफ-सफाई के दौरान धूल-धुएं के कण, पालतू पशुओं के बाल, रसोई के धुएं के कारण दमे के मामले ज्यादा सामने आते हैं।
सेहत पर बुरा असर
पारस हॉस्पिटल के पल्मोनोलॉजी और स्लीप मेडिसिन विभाग से जुड़े डॉ. सुरिन्दर कुमार गुप्ता के अनुसार, ‘इनडोर वायु प्रदूषण दमा या क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज जैसी फेफड़ों की पुरानी समस्याओं के बढ़ने की आशंका को बढ़ा देता है। इससे दमा व सांस की पुरानी समस्याओं के लक्षण गंभीर हो जाते हैं। इसके अलावा, गले, आंख, नाक और फेफड़ों में जलन की समस्या भी ज्यादा रहने लगती है। लंबे समय तक ऐसे माहौल में रहना फेफड़ों पर बुरा असर डालता है। मसलन, रेडॉन एक्सपोजर के संपर्क में आने से फेफड़ों का कैंसर होने की आशंका ज्यादा होती है। इसके अलावा, अप्रत्यक्ष धूम्रपान भी फेफड़ों को नुकसान पहुंचाता है। अध्ययनों की मानें, तो लगभग 60 फीसदी भारतीयों की सेहत घर के भीतर के प्रदूषण से प्रभावित होती है। इनडोर प्रदूषण की वजह से हर साल 8 लाख भारतीय समय से पूर्व मृत्यु का शिकार हो रहे हैं।
लंबे समय तक घर के भीतर प्रदूषित हवा में रहना, हृदय धड़कन के अनियमित होने और दमा जैसी समस्या के खतरे को बढ़ा देता है।
मैग्नेटो क्लीनटेक के सीईओ हिमांशु अग्रवाल के अनुसार, ‘घरों के भीतर हम लंबा समय बिताते हैं। हमारी जीवनशैली और उपयोग में लाए जाने वाले सामान घरों के भीतर की हवा को बाहर की तुलना में दस गुना तक ज्यादा खराब बना सकते हैं। खासकर छोटे बच्चों में होने वाली सांस की समस्याओं पर इसका बुरा असर पड़ता है और उनका इम्यून सिस्टम भी कमजोर हो जाता है।’
कैसे बच सकते हैं
● घर के अंदर धूम्रपान न करें।
● कूड़ा-करकट कम करें
● घर में ताजी हवा व रोशनी की व्यवस्था रखें। खिड़कियां व रोशनदान जरूर बनवाएं।
● क्लीनर व सफाई के अन्य उत्पाद, नेल पॉलिश, हेयर स्प्रे व खाना पकाने आदि की प्रक्रिया से भी कई हानिकारक रसायन पैदा होते हैं। पर्याप्त वेंटिलेशन के अभाव में वे घर में जमा होते रहते हैं, जिसका बुरा असर पड़ता है।
● कीड़े-मकौड़ों व कॉकरोच को घर में पनपने न दें।
● धूल, एलर्जी का बड़ा कारण है। कालीन, पायदान व चटाई आदि की नियमित साफ- सफाई करें।
● एग्जॉस्ट फैन व एयर प्यूरीफायर भी लगवा सकते हैं। घर में व आसपास पौधे लगाएं।
● घर के भीतर गीले कपड़े न सुखाएं। हर समय की नमी दमा की समस्या बढ़ाती है।
● कूड़े को ढक कर रखें।