प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केंद्र ने तीनों विवादित कृषि कानून वापस लेने की घोषणा भले ही कर दी गई हो, लेकिन किसान आंदोलन अब भी जारी है। शनिवार को हुई संयुक्त किसान मोर्चा की कोर कमेटी की बैठक के बाद भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के नेता राकेश टिकैत ने कहा कि 22, 26 और 29 नवंबर को जो कार्यक्रम होने वाले हैं उन्हें रोका नहीं जाएगा।
गाजीपुर बॉर्डर पर आंदोलन की अगुवाई कर रहे राकेश टिकैत ने कहा कि अगर सरकार को कोई बातचीत करनी है तो वो बात कर सकते हैं। यह बातचीत अगर शुरू में ही हो गई होती तो इतने किसानों की मृत्यु नहीं होती। टिकैत ने कहा कि संसद में तीन कानूनों को निरस्त करने और फसलों के लिए एमएसपी की कानूनी गारंटी दिए जाने के बाद ही किसान आंदोलन वापस लिया जाएगा।
वहीं, किसान नेता दर्शन पाल सिंह ने कहा कि आंदोलन अभी जारी रहेगा। हमें 22 तारीख को लखनऊ की रैली को कामयाब करना है। अगर लखीमपुर खीरी में हमारे साथियों को परेशान करने की कोशिश की जाती है तो फिर हम लखीमपुर खीरी इलाके में आंदोलन चलाएंगे। आज की बैठक में फैसला लिया गया कि हमारे 22, 26 और 29 नवंबर को जो कार्यक्रम होने वाले हैं वो जारी रहेंगे। 22 को लखनऊ रैली के बाद 26 को पूरे देश में किसान आंदोलन के एक साल पूरे होने पर जश्न मनाया जाएगा और 29 को ट्रैक्टर मार्च (संसद तक) होगा।
सिंघु बॉर्डर पर मौजूद किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने कहा कि सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए बोला है तो वो इसको कब तक वापस लेंगे इसके बारे में कुछ ठोस नहीं है। MSP पर अभी कोई ठोस बात नहीं हुई है और जो मामले किसानों पर दर्ज हुए हैं, उनको भी वापस लेना चाहिए। बता दें कि, 26 जनवरी को राजधानी में किसानों की ट्रैक्टर रैली ने हिंसक रूप ले लिया था। इस दौरान बेकाबू भीड़ लालकिले में घुस गई थी और वहां प्राचीर पर एक धार्मिक ध्वज फहरा दिया था।
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को गुरु पर्व के अवसर पर राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में केंद्र के तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त करने की अचानक घोषणा करने के साथ ही इन कानूनों के फायदे किसानों को नहीं समझा पाने के लिए जनता से माफी मांगी। प्रधानमंत्री ने कहा था कि तीनों कृषि कानून किसानों के फायदे के लिए थे, लेकिन हमारे सर्वश्रेष्ठ प्रयासों के बावजूद हम किसानों के एक वर्ग को मना नहीं पाए। उन्होंने कहा कि तीन कृषि कानूनों का लक्ष्य किसानों, खासकर छोटे किसानों को सशक्त बनाना था।