गुरुग्राम। सेक्टर-10 नागरिक अस्पताल में बिना एमबीबीएस डिग्री के गैर स्वास्थ्य कर्मचारी डॉक्टरों का काम संभाल रहे हैं। हड्डी टूटने, मांस फटने या चोट लगने पर सेक्टर-10 नागरिक अस्पताल में पहुंचने वाले मरीजों को ओपीडी में जांच के बाद चपरासी और अटेंडेंट ही पट्टी और प्लास्टर करते हैं। जबकि डॉक्टर केवल ओपीडी में मरीज के कार्ड पर दवा और जांच लिखकर उन्हें आगे भेज देते हैं। जहां चिकित्सकों और स्वास्थ्य कर्मियों की गैर मौजूदगी में अटेंडेंट और चपरासी मरीजों की हड्डियां जोड़ रहे हैं। इसे लेकर कई मरीजों ने मौखिक तौर पर डॉक्टरों से शिकायत कर एतराज भी जताया है, लेकिन उसे गंभीरता से नहीं लिया जाता है। वहीं इस मामले में जब अस्पताल प्रबंधन के अधिकारियों से बात की गई तो वो भी पल्ला झाड़ते नजर आए।
200 मरीजों पर सिर्फ एक डॉक्टर
सेक्टर-10 नागरिक अस्पताल में विभिन्न रोगों से संबंधित इलाज कराने के लिए ओपीडी में रोजाना 1800 से दो हजार मरीज आते हैं। हड्डी रोग की ओपीडी में आने वाले मरीजों की संख्या प्रतिदिन 150 से 200 के बीच रहती है। इनमें वो लोग भी शामिल रहते हैं, जो किसी घटना में घायल हुए हैं या गिरने व चोट लगने की वजह से उनकी हड्डी टूट गई होती है या मांस फटा होता है। हड्डी रोग ओपीडी में 200 मरीजों की जांच के लिए प्रतिदिन सिर्फ एक ही चिकित्सक उपस्थित रहता है। ऐसे में ओपीडी में मौजूद चिकित्सक व अन्य मेडिकल स्टाफ केवल मरीजों की पीड़ा सुनकर कार्ड पर उन्हें दवा और एक्सरे जांच के लिए लिख देते हैं। रिपोर्ट आने पर यदि उन्हें प्लास्टर की जरूरत होती है, तो आगे दूसरे कमरे में भेज दिया जाता है। वहां न तो कोई डॉक्टर मौजूद होता है और न कोई अन्य स्वास्थ्य कर्मी। हड्डी रोग ओपीडी में अटेंडेंट का काम संभालने वाला कर्मचारी उन मरीजों को प्लास्टर चढ़ाकर उनकी हड्डियों को जोड़ता है।
कर्चचारी ने कहा उसे दस सालों का तजुर्बा
मरीज आबिद ने बताया कि उसे फैक्टरी में काम करने के दौरान उंगली पर चोट लगी थी। जिससे उसकी उंगली की हड्डी टूटी गई थी। उसने बताया कि वह 12 नवंबर को जांच कराने के लिए सेक्टर-10 नागरिक अस्पताल आया था। यहां डॉक्टर ने पहले उसका ऑपरेशन कर तार डाली थी और फिर उंगली पर प्लास्टर चढ़ाने को कहा था। उसे कार्ड पर प्लास्टर लिखकर दूसरे कमरे में भेज दिया गया था। जहां सिर्फ एक अटेंडेंट मौजूद था। आबिद ने बताया कि बिना डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ की उपस्थिति में उस कर्मचारी ने उसकी उंगली पर प्लास्टर चढ़ाया। जब उसने उस कर्मचारी से इसका एतराज जताया तो कर्मचारी ने बताया कि उसे दस सालों का तजुर्बा है। वहीं विष्णु प्रताप ने बताया कि उनकी बुजुर्ग मांग संतुलन बिगड़ने से चलते हुए घर में गिर गई थी। इससे उनके घुटने की हड्डी अपनी जगह से हिल गई थी। नागरिक अस्पताल की ओपीडी में डॉक्टर ने उन्हें प्लास्टर चढ़ाने के लिए लिखा था। उन्हें जिस कमरे में प्लास्टर चढ़वाने भेजा गया था, वहां सिर्फ अटेंडेंट मौजूद थे। उसने अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड के बाहर मौजूद सिक्योरिटी गार्ड को बुलवाकर उसकी मदद लेते हुए उनकी मां के पैर पर प्लास्टर चढ़ाया। इस बारे में उन्होंने जब डॉक्टर से बात की तो उन्हें अनसुना कर दिया गया।
डॉक्टरों की मौजूदगी में ही अटेंडेंट उनकी सहायता के लिए उपस्थित रहते हैं। यदि कहीं किसी तरह की लापरवाही बरती जा रही है, तो उसका पता लगाया जाएगा। अस्पतालों में मरीजों को हर समय गुणवत्तापूर्वक इलाज प्रदानन किया जाता है।