संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन के लिए की गयी प्रतिबद्धताओं से दुनिया भविष्य में ग्लोबल वार्मिंग के गंभीर दुष्परिणामों को थोड़ा-सा कम कर सकती है। बृहस्पतिवार को दो नए प्रारंभिक वैज्ञानिक विश्लेषणों में यह जानकारी दी गई। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी की रिपोर्ट और ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों की एक रिपोर्ट में भविष्य के लिए आशा जताई गई है। उनका कहना है कि अगर सब सही होता है तो हाल के कदमों से अक्टूबर मध्य में किए गए अनुमानों से 0.3 से 0.5 डिग्री फारेनहाइट तक तापमान कम हो जाएगा। विश्लेषणों में पूर्व औद्योगिक काल के बाद से 2.1 डिग्री सेल्सियस वार्मिंग के बजाय 1.8 या 1.9 डिग्री सेल्सियस वार्मिंग का अनुमान जताया गया है। हालांकि दोनों विश्लेषणों में दुनिया 1.5 डिग्री सेल्सियस की वार्मिंग से दूर है जिसका लक्ष्य 2015 के पेरिस जलवायु समझौते में तय किया गया। पृथ्वी पहले ही 1.1 डिग्री सेल्सियस तक गर्म हो गयी है।
मेलबर्न विश्वविद्यालय के जलवायु वैज्ञानिक माल्टे मेनशॉसेन ने कहा, ”हमारा अब भविष्य के लिए थोड़ा और सकारात्मक रुख है।” उन्होंने 1.9 डिग्री सेल्सियस तक वार्मिंग का अनुमान जताया है और इसके लिए भारत तथा चीन द्वारा दीर्घकालीन प्रतिबद्धताओं को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा, ”यह अब भी 1.5 डिग्री से काफी दूर है। हम जानते हैं कि यह पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचने वाला है। यह दो डिग्री सेल्सियस से थोड़ा ही कम इसलिए काफी कुछ किए जाने की जरूरत है।” ऊर्जा एजेंसी ने सोमवार को कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन पर अल्पकालीन कटौली और 2070 तक शून्य उत्सर्जन की भारत की प्रतिबद्धता को ध्यान में रखते हुए विश्लेषण किया है। साथ ही विश्लेषण में ग्रीनहाउस गैस मिथेन में कमी लाने के लिए मंगलवार को 100 से अधिक देशों द्वारा की गयी प्रतिबद्धताओं पर विचार किया गया है। अंतरसरकारी एजेंसी का कहना है कि यह पहली बार है जब अनुमान दो डिग्री सेल्सियस से कम जताया गया है। एजेंसी के प्रमुख फातिह बिरोल ने सीओपी 26 में नेताओं से कहा, ”अगर इन सभी प्रतिबद्धताओं को लागू किया गया तो तापमान में वृद्धि को 1.8 डिग्री सेल्सियस तक सीमित किया जा सकता है।”