बुन्देलखण्ड की सबसे भीषण मुठभेड़ की कहानी के रूप में आज भी वर्ष 2009 में हुए घनश्याम केवट मुठभेड़ का जिक्र होता है। जिसने यूपी पुलिस को कटघरे में खड़ा कर दिया था। एक ऐसी मुठभेड़ जिसका लाइव टेलीकास्ट उस समय दुनिया ने टीवी पर देखा। खाकी ने अपने चार जाबांज खो दिए थे। इसके अलावा छह घायल हुए थे। इनमें आईजी व आईजी स्तर के लंबरदार थे। खाकी की मजबूरी कहें या हताशा कि उस डकैत को मारने के लिए पूरे गांव में आग लगा दी गई और ग्रामीणों के आशियाने जलकर खाक हो गए। कुछ ऐसा ही दहशत भरा मंजर था 52 घण्टे तक चली उस मुठभेड़ का। इस मुठभेड़ में बुन्देलखण्ड ही नहीं तब के इलाहाबाद जिले के 400 पुलिस जवान और एसटीएफ को झोंका गया था। घनश्याम केवट अकेले सैकड़ों कारतूस, फैक्ट्री मेड रायफल और सिर्फ एक पानी की बोतल के सहारे तीन दिन तक लड़ता रहा था।
यूपी पुलिस की नाक में दम कर दिया था
पाठा के बीहड़ों से लेकर तराई के अनसुलझे रास्तों पर आज तक खौफ के कई ऐसे सौदागर हुए जिन्हें कानून की भाषा में डकैत कहा जाता है। कुख्यात ददुआ ठोकिया रागिया बलखड़िया और बबुली कोल ने यदि बीहड़ों में अपनी दहशत का साम्राज्य कायम किया है तो तराई के इलाकों में खूंखार शंकर केवट उसके शागिर्द घनश्याम केवट ने खौफ की इबारत लिखी है। घनश्याम केवट ने तो दस्यु इतिहास के पन्नों में कभी न भूलने वाली उस मुठभेड़ को अंजाम दिया जिसने सबसे राज्य उत्तर प्रदेश की पुलिस को नाको चने चबवा दिए थे।
जमौली गांव में हुई थी भीषण मुठभेड़
16 जून सन् 2009 समय 11 बजे सुबह चित्रकूट के राजापुर थाना क्षेत्र अंतर्गत जमौली गांव में पुलिस की गाड़ियों ने सायरन बजाते हुए इंट्री की, सहमे ग्रामीणों को यह अंदाजा भी न था कि अगले तीन दिनों तक उनकी जिंदगी में क्या तूफ़ान आने वाला है। दरअसल खाकी को सूचना मिली थी कि गांव में 50 हजार का इनामी डकैत घनश्याम केवट छिपा हुआ है। डकैत को घेरने सिर्फ कुछ थानों की फ़ोर्स को बुलाया गया था लेकिन खाकी को भी आने वाले खौफनाक मंजर का इल्म न था।
फैक्ट्री मेड रायफल से घनश्याम ने लिया मोर्चा
पुलिस की मौजूदगी की भनक लगते ही डकैत घनश्याम केवट ने दो मंजिला पक्के मकान के सबसे ऊपर वाले कमरे में खुद का ठिकाना बना लिया और सैकड़ों कारतूस व 315 बोर की फैक्ट्री मेड राइफल तथा एक बोतल पानी के सहारे खाकी से भिड़ गया। घनश्याम ने मकान मालिक को राइफल की नोक पर मकान से बाहर निकाल दिया था। कमरे की खिड़की से घनश्याम को गांव का लगभग हर वो कोना दिख रहा था जहां जहां खाकी की चहलकदमी थी। इसी कमरे में मौजूद रहकर घनश्याम केवट ने तीन दिनों तक खाकी पर ताबड़तोड़ गोलियों की बरसात की जिसने खाकी को भी बैकफुट पर ला दिया था।
52 घण्टे तक चली थी मुठभेड़
16 जून 2009 दोपहर एक बजे का वक्त था खाकी की मंशा भांपते हुए डकैत घनश्याम ने ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू की। पुलिस को संभलने का मौका न मिला। घनश्याम रात होने तक रुक-रुककर गोलियों बरसाता रहा। उसके खौफनाक इरादों को भांपकर भारी पुलिस बल बुलाना पड़ा। अगले दिन 17 जून को चित्रकूट,बांदा, हमीरपुर,कौशाम्बी से फ़ोर्स मंगाई गई। ददुआ ठोकिया जैसे खूंखार डकैतों को ठिकाने लगाने वाली एसटीएफ टीम को भी लगाया गया।
आग के हवाले कर दिया गया पूरा गांव
घनश्याम की गोलियों की बौछार के आगे पस्त हो रही खाकी ने उसे कमरे से बाहर निकालने के लिए गांव खाली कराकर पूरे गांव में आग लगा दी थी। पुलिस की मंशा यह थी कि आग से डरकर घनश्याम बाहर निकलेगा और एनकाउंटर कर दिया जाएगा, लेकिन पुलिस को उसकी दिलेरी का अंदाजा नहीं था। लपटों के बीच भी घनश्याम लगभग 6 घण्टे तक नहीं निकला। लपटों ने अपना रौद्र रूप कुछ शांत किया कि फिर घनश्याम ने ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी।
4 जाबांज शहीद, 6 पुलिसकर्मी हुए घायल
17 जून से लेकर 18 जून 2009 के बीच दस्यु घनश्याम की गोलियों का निशाना बनते हुए खाकी के 4 जाबांज शहीद हो गए जिनमें पीएसी के कम्पनी कमांडर बेनी माधव सिंह एसओजी सिपाही शमीम इक़बाल और वीर सिंह शामिल थे। दस्यु की गोलियों से तत्कालीन पुलिस महानिरीक्षक पीएसी वीके गुप्ता और उपमहानिरीक्षक सुशील कुमार सिंह सहित छह पुलिसकर्मी गंभीर रूप से घायल हो गए। एडीजी आईजी जोन ने संभाला मोर्चा दस्यु घनश्याम से टक्कर लेने के लिए तत्कालीन एडीजी बृजलाल आईजी जोन इलाहाबाद सूर्य कुमार शुक्ला सहित खाकी के कई लम्बरदार जमौली गांव पहुंचे, लेकिन किसी को भी सफलता नहीं मिली। उधर, लखनऊ में तत्कालीन डीजीपी विक्रम सिंह न्यूज चैनलों पर हो रहे मुठभेड़ के सजीव प्रसारण के माध्यम और फोन द्वारा मातहतों को गाइड कर रहे थे।
तीन दिन बाद जंगल भागते समय मारा गया
18 जून समय लगभग 4 बजे को घनश्याम मारा गया। तीन दिन चली इस मुठभेड़ में 400 पुलिसकर्मियों ने मोर्चा लिया था। दस्यु घनश्याम शाम लगभग 4 बजे चीते की फुर्ती की तरह कमरे से भगा। उसने कमरे का दरवाजा खोलते हुए छत पर चढ़कर नीचे लम्बी छलांग लगाई और गांव के पीछे जंगल की ओर भागा। चूंकि पुलिस ने पूरे इलाके को अपने घेरे में ले लिया था इसलिए दस्यु घनश्याम जिस ओर भागा वहां भी खाकी की कई टुकड़ियां तैनात थीं। घनश्याम को जंगल की ओर भागते देख पुलिस ने ताबड़तोड़ गोलियों की बौछार शुरू कर दी। लगभग 45 मिनट बाद जब फायरिंग बंद हुई और सन्नाटा छा गया तो डकैत घनश्याम की तलाश शुरू की गई। तलाशी के दौरान गोलियों से छलनी घनश्याम की लाश खाकी को बरामद हुई। आज भी पुलिस को नहीं घनश्याम को याद करते हैं लोग घनश्याम केवट को मारकर भले ही खाकी ने उस समय खुद की पीठ थपथपाई हो लेकिन जिस तरह से एक अकेले डकैत ने यूपी पुलिस से तीन दिन तक टक्कर ली उसको याद करके आज भी लोग दस्यु घनश्याम केवट का जिक्र करते हुए रोमांचित हो जाते हैं।