देश में राजनीतिक रूप से सबसे अहम सूबे उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव अब बेहद नजदीक आ चुका है। ऐसे में सभी दल ताकत झोंकने के साथ खुद को सबसे मजबूत बताने में जुटे हुए हैं, जनता के बीच सबसे अधिक लोकप्रियता किसकी है यह तो मतगणना के बाद ही तय होगा, लेकिन इतना साफ है कि पिछले कुछ दिनों में जिस तरह कांग्रेस ने सक्रियता बढ़ाई है उससे सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से अधिक समाजवादी पार्टी की बेचैनी बढ़ी है। राजनीतिक जानकार कहते हैं कि कांग्रेस जीतने की स्थिति में तो नहीं दिखती लेकिन वह सपा और बसपा जैसे दलों का कुछ वोट जरूर अपनी ओर खींच सकती है, जिससे बीजेपी को सीधा फायदा होगा। इसके अलावा ओवैसी जैसे नेता भी सत्ताविरोधी वोटों का बंटवारा करेंगे।
2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने प्रचंड बहुमत के साथ 311 सीटों पर कब्जा किया था, जबकि कांग्रेस और समाजवादी पार्टी गठबंधन के बावजूद महज 54 सीटें जीत पाईं थीं। ‘यूपी को यह साथ पसंद है’ के नारे के साथ चुनावी मैदान में कूदे राहुल और अखिलेश का यह साथ करारी हार के बाद अधिक दिनों तक नहीं टिका। 2019 लोकसभा चुनाव में बसपा से पुरानी दुश्मनी भुलाकर साइकिल पर हाथी को बिठाने का अखिलेश का प्रयोग सफल नहीं रहा। ऐसे में बुआ और भतीजे का भी साथ एक दूसरे पर ठीकरा फोड़ने के साथ खत्म हो गया।
2014 से ही भगवा दल को रोकने के लिए विपक्षी एकजुटता का नारा देते आ रहे दल इस चुनाव में एक मंच पर आने की बात भी नहीं कर रहे हैं। ऐसे में किसान आंदोलन, लखीमपुरखीरी हिंसा, ब्राह्मणों की अनदेखी जैसे मुद्दों पर भले ही विपक्ष ने योगी सरकार की घेराबंदी तेज कर दी है, लेकिन वोटों के बिखराव की वजह से बीजेपी अधिक चिंता में दिखाई नहीं देती है।
यूपी के वरिष्ठ पत्रकार गोविंद पंत राजू कहते हैं कि विपक्षी एकता नहीं होने की वजह से वोट बंटना तो तय है, भले ही किसी को अधिक और किसी को कम वोट मिलेंगे, लेकिन वोटों के बिखराव से बीजेपी का फायदा होना तय है। पंत बीजेपी और विपक्षी दलों के वोटबैंक में अंतर बताते हुए कहते हैं, ”बीजेपी का कथित वोट बैंक एक अलग किस्म का है और विपक्षी दलों का कुछ अलग, जिसमें मुस्लिम वोटों को अपनी ओर खींचने की प्रतिस्पर्धा भी है। मुस्लिम वोटर्स के पास तीन विकल्प हैं, और जाहिर सी बात है कि सभी वोट एक तरफ नहीं जाएगा। समाजवादी पार्टी, बीएसपी और कांग्रेस के बीच इनका बंटवारा तय है।”
क्या कांग्रेस की सक्रियता से सपा को नुकसान और बीजेपी को फायदा होगा? इस सवाल के जवाब में पंत कहते हैं कि राजनीति एक टीम गेम है और मैच जीतने के लिए आपको पूरे मैच में अच्छा प्रदर्शन करना होता है। शुरुआत या अंत के 5 ओवर में अच्छा खेलकर आप मैच नहीं जीत सकते हैं। इसी तरह सिर्फ 6 महीने की तैयारी से किसी पार्टी का रिवाइवल नहीं हो सकता है। जमीनी स्तर पर अच्छे प्रदर्शन के लिए काम के लिए लंबे समय तक काम करना पड़ता है। कांग्रेस की दिक्कत है कि नेता अचानक आते हैं और फिर गायब हो जाते हैं। जहां तक सपा को नुकसान पहुंचाने की बात है, कांग्रेस अभी बहुत अच्छी स्थिति में तो नहीं है, लेकिन वह जो भी वोट हासिल करेगी, जाहिर तौर पर उसका नुकसान बीजेपी के खिलाफ दूसरे दलों को होगा।
सक्रियता बढ़ा रही है कांग्रेस
कांग्रेस पार्टी ने जहां पिछले चुनाव में राहुल गांधी को जोरशोर से अखिलेश के संग उतारा था तो वहीं इस बार दांव प्रियंका गांधी पर लगाया गया है। प्रियंका ने आक्रामक अंदाज में मोर्चा संभाला है। पहले लखीमपुर हिंसा के मामले में उन्होंने जिस अंदाज में सरकार को घेरा उससे कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जोश जरूर आया है। इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी के गढ़ में जाकर उन्होंने रैली को तो अब आगरा में सफाईकर्मी की पुलिस हिरासत में मौत के मामले में भी प्रियंका सक्रिय हो गई हैं।
2017 के चुनाव में क्या था समीकरण
2017 विधानसभा चुनाव में बीजेपी को सर्वाधिक 39.7 फीसदी वोट मिले थे। बसपा ने 22.2 फीसदी वोटों पर कब्जा किया था, लेकिन महज 19 सीटों पर ही जीत कर पाई थी। सपा को 21.8 फीसदी वोट मिले तो कांग्रेस 6.3 फीसदी वोट ही हासिल कर पाई थी। ऐसे में यदि कांग्रेस वोट फीसदी को 10 फीसदी के पार ले जाने में कामयाब रहती है तो जाहिर है कि इसका कुछ हिस्सा सपा और बसपा से भी आएगा।