सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में हाल में नियुक्त किए गए न्यायमूर्ति अभय एस ओका ने कहा कि इस समय न्यायपालिका ”विश्वसनीयता के संकट” से जूझ रही है। उन्होंने कहा कि कानूनी पेशे के सदस्यों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कोविड-19 महामारी के कारण लंबित हुए मामले जल्द निपटाए जाएं।
न्यायमूर्ति ओका को देश की शीर्ष अदालत में न्यायाधीश नियुक्त किए जाने पर उनके सम्मान में महाराष्ट्र में ‘ठाणे डिस्ट्रिक्ट कोर्ट्स बार एसोसिएशन’ ने सोमवार की शाम को यहां एक कार्यक्रम आयोजित किया था। कार्यक्रम में न्यायमूर्ति ओका ने कहा कि न्यायपालिका ”विश्वसनीयता के संकट” की चुनौती का सामना कर रही है।
उन्होंने कहा कि कोविड-19 की तीसरी लहर भले ही क्यों न आ जाए, न्यायिक अधिकारियों और वकीलों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कानून संबंधी कार्य निर्बाध जारी रहे और लोगों को न्याय मिले। उन्होंने कहा कि कानूनी पेशे के सदस्यों को न्यायपालिका में देश के नागरिकों का भरोसा बहाल करने की दिशा में काम करना चाहिए।
उन्होंने कर्नाटक उच्च न्यायालय का उदाहरण दिया, जहां न्यायाधीशों ने लंबित मामलों का निपटारा करने के लिए वैश्विक महामारी के दौरान 11 शनिवार काम करने का फैसला किया था। उन्होंने कहा कि अन्य अदालतों को भी इसी तरह के तरीके खोजने चाहिए।
न्यायमूर्ति ओका ने कहा कि देश में इस समय न्यायाधीशों और जनसंख्या का अनुपात प्रति 10 लाख लोगों के लिए 17 या 18 न्यायाधीश हैं। उन्होंने कहा कि अदालतों में न्यायाधीशों की कमी की समस्या से निपटा जाना चाहिए और इस अनुपात में सुधार किया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति ओका ने अपने भाषण के दौरान बताया कि उन्होंने ठाणे अदालत में 1983 में वकालत शुरू की थी और उन्हें 2003 में बंबई उच्च न्यायालय में अतिरिक्त न्यायाधीश के तौर पर पदोन्नत किया गया। वह 2019 में कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बने और उन्हें इस साल अगस्त में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के तौर पर पदोन्नत किया गयाा।