मधुमेह, मोटापा और बढ़ती उम्र संबंधित बीमारियों के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली मौजूदा दवाओं का उपयोग संभावित रूप से कोरोना के इलाज के लिए किया जा सकता है। यह दावा भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान (आईआईएसईआर) भोपाल ने अपने एक अध्ययन में किया है।
टीम ने हाल ही में कोविड-19, उम्र बढ़ने और मधुमेह के बीच जैव-आणविक संबंधों की समीक्षा प्रकाशित की है। समीक्षा को ‘मॉलिक्यूलर एंड सेल्युलर बायोकेमिस्ट्री’ पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।
आईआईएसईआर भोपाल के इनोवेशन एंड इनक्यूबेशन सेंटर फॉर एंटरप्रेन्योरशिप (आईआईसीई) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमजद हुसैन ने कहा कि जब लगभग दो साल से कोरोना महामारी दुनिया को प्रभावित किए हुए है, हम धीरे-धीरे वायरस और उसके काम करने के तरीके को समझने लगे हैं।
कोरोना संक्रमण के अल्पकालिक और दीर्घकालिक परिणामों पर बढ़ती उम्र संबंधी बीमारियों और मधुमेह के प्रभावों पर दुनिया भर में अध्ययन किए जा रहे हैं। समीक्षा से पता चलता है कि मधुमेह, बढ़ती उम्र संबंधी बीमारियां और कोरोना की स्थितियां ऑक्सीडेटिव तनाव से जुड़ी हैं।
साथ ही प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया में कमी और उनसे उत्पन्न होने वाली जटिलताओं से हृदय संबंधी विकार, नेत्र रोग, तंत्रिका रोग और गुर्दे की समस्याओं जैसी कई अन्य बीमारियों की शुरुआत होती है। हुसैन ने कहा कि हमारे पास रैपामाइसिन जैसी कुछ मौजूदा संभावित दवाओं के भी सबूत हैं, जिन्हें इन बीमारियों से जुड़े सामान्य जैव रासायनिक मार्गों के कारण कोरोना उपचार के लिए इनके इस्तेमाल की संभावना खोजी जा सकती है।
ऐसा ही एक और उदाहरण एक दवा मेटफॉर्मिन है जिसे आमतौर पर रक्त शर्करा नियंत्रित करने के लिए उपयोग किया जाता है। वैज्ञानिकों ने यह दिखाने के लिए कम्प्यूटेशनल अध्ययन भी किया है कि कोशिका झिल्ली में मौजूद लिपिड कोरोना वायरस संक्रामकता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
प्रमुख शोधकर्ता ने कहा कि संभावित यौगिकों के मौजूदा पूल से प्रभावी चिकित्सा विज्ञान का चयन करने की तत्काल आवश्यकता है, क्योंकि एक नई दवा की खोज और इसकी मंजूरी में अधिक समय लगता है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि करक्यूमिन और रेस्वेराट्रोल जैसे प्राकृतिक यौगिकों और मौजूदा दवाओं जैसे मेटफॉर्मिन और रैपामाइसी में कोरोना और पोस्ट-कोरोना वायरस सिंड्रोम के उपचार के लिए बड़े पैमाने पर परीक्षण किए जाने की क्षमता है।