सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को 43 किसान संगठनों और राकेश टिकैत, दर्शन पाल तथा गुरनाम सिंह चढूनी सहित विभिन्न किसान नेताओं को हरियाणा सरकार के उस आवेदन पर नोटिस जारी किए जिसमें आरोप लगाया गया है कि वे दिल्ली की सीमाओं पर सड़कों की नाकेबंदी का मुद्दा हल करने के लिए राज्य पैनल के साथ बातचीत में शामिल नहीं हो रहे हैं।
जस्टिस एस.के. कौल और जस्टिस एम.एम. सुंदरेश की बेंच ने आवेदन का संज्ञान लेते हुए नोटिस जारी करने का आदेश दिया। बेंच ने सवाल किया कि सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता आपने करीब 43 लोगों को पक्षकार बनाया है। आप उन तक नोटिस कैसे भेजेंगे।
मेहता ने कहा कि किसानों के नेतागण इस मामले में आवश्यक पक्षकार हैं और वह सुनिश्चित करेंगे कि उन लोगों तक नोटिस की तामील हो। मेहता ने याचिका पर शुक्रवार यानी आठ अक्टूबर को सुनवाई का अनुरोध किया। बेंच ने अगले सप्ताह शुरू हो रहे दशहरा अवकाश के ठीक बाद मामले को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है।
हरियाणा सरकार ने नोएडा निवासी मोनिका अग्रवाल की जनहित याचिका में विभिन्न किसान संगठनों के पदाधिकारियों सहित 43 लोगों को पक्षकार बनाने का अनुरोध किया है। मोनिका अग्रवाल ने अपनी याचिका में शिकायत की है कि किसानों के विरोध प्रदर्शन की वजह से सड़के अवरुद्ध होने से लोगों को आने जाने में असुविधा हो रही है।
बता दें कि, नए कृषि कानूनों के खिलाफ बीते साल 26 नवंबर से हजारों की तादाद में किसान दिल्ली और हरियाणा की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं। कृषि कानूनों को रद्द कराने पर अड़े किसान इस मुद्दे पर सरकार के साथ आर-पार की लड़ाई का ऐलान कर चुके हैं। किसान फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी देने के लिए एक नया कानून लाने की मांग कर रहे हैं। इन विवादास्पद कानूनों पर बने गतिरोध को लेकर हुई किसानों और सरकार के बीच कई दौर की वार्ता बेनतीजा रही। किसानों ने सरकार से जल्द उनकी मांगें मानने की अपील की है। वहीं सरकार की तरफ से यह साफ कर दिया गया है कि कानून वापस नहीं होगा, लेकिन संशोधन संभव है।
गौरतलब है कि किसान तीन नए कृषि कानूनों – द प्रोड्यूसर्स ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फैसिलिटेशन) एक्ट, 2020, द फार्मर्स ( एम्पावरमेंट एंड प्रोटेक्शन) एग्रीमेंट ऑन प्राइस एश्योरेंस एंड फार्म सर्विसेज एक्ट, 2020 और द एसेंशियल कमोडिटीज (एमेंडमेंट) एक्ट, 2020 का विरोध कर रहे हैं। केन्द्र सरकार सितंबर 2020 में पारित किए तीन नए कृषि कानूनों को कृषि क्षेत्र में बड़े सुधार के तौर पर पेश कर रही है, वहीं प्रदर्शन कर रहे किसानों ने आशंका जताई है कि नए कानूनों से एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) और मंडी व्यवस्था खत्म हो जाएगी और वे बड़े कॉरपोरेट पर निर्भर हो जाएंगे।