इंदिरा गांधी नहर में फेंकी जाने वाली लाशों को लेकर राजस्थान और पड़ोसी राज्यों, पंजाब व हरियाणा के बीच झगड़ा काफी पुराना है। अब यह मामला राजस्थान हाई कोर्ट में पहुंच गया है। इस मामले में दाखिल पीआईएल के आधार पर हाई कोर्ट ने राजस्थान सरकार और अन्य को नोटिस दी है।
केवल 260 लाशों की हो सकी है पहचान
गौरतलब है कि इंदिरा गांधी नहर सबसे लंबी नहर है जो राजस्थान, पंजाब और हरियाणा से गुजरती है। यह पंजाब के हरिक बैराज से निकलती है। मुख्य नहर की कुल लंबाई 445 किमी है। वहीं फीडर कैनाल 204 किमी लंबी है जिसमें से 170 किमी पंजाब और हरियाणा में है। मामले में दाखिल पीआईएल के मुताबिक 2010 से 2019 के बीच राजस्थान स्थित इंदिरा गांधी नहर में कुल 1822 लाशें मिलीं। इनमें से केवल 260 लाशों की पहचान हो गई, जबकि 1562 लाशों के बारे में कुछ पता नहीं चल सका। याचिकाकर्ता ने एक ऐसा सिस्टम डेवलप करने की प्रार्थना की है जिससे नहर में जाल लगाया जा सके। ताकि अन्य पड़ोसी राज्यों से लाशें बहकर राजस्थान में न आने पाएं। जस्टिस संगीता लोढ़ा और विनीत कुमार माथुर की खंडपीठ ने याचिका पर सुनवाई करने के बाद राजस्थान सरकार से जवाब मांगा है।
अपराधियों के लिए स्वर्ग जैसी बन चुकी है नहर
याचिकाकर्ता बाबू राम चौहान जैसलेर के रहने वाले हैं और सरकारी अध्यायक होने के साथ-साथ समाजसेवी भी हैं। उन्होंने सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी के बाद यह पीआईएल दाखिल की है। याचिकाकर्ता के वकील रज्जाक खान ने पीआईएल में इस बात का जिक्र किया है कि इंदिरा गांधी नहर अपराधियों के लिए बहुत मुफीद जगह बन चुकी है। हत्या जैसे जुर्म करने के बाद लाशों को इसमें बहा दिया जाता है और गुनहगार आराम से बचकर निकल जाता है। उन्होंने बताया कि गुमशुदा लाशों के मिलने के बाद उनका अंतिम संस्कार भी पूरे रीति-रिवाज से नहीं हो पाता। यह मानवाधिकार का उल्लंघन भी है।
जाल लगाने और पुलिस थाना बनाने की गुहार
पीआईएल में इस बात की गुजारिश की गई थी कि जिम्मेदारों को इस नहर में राजस्थान-हरियाणा बॉर्डर पर जाली लगाने के लिए कहा जाए। हालांकि जिम्मेदारों ने नहर में जाल लगाने से यह कहते हुए मना कर दिया कि इससे पानी के बहाव पर असर पड़ेगा। इससे नहर के अस्तित्व पर भी संकट हो सकता है। वहीं याचिकाकर्ता ने नहर क्षेत्र में एक स्पेशल पुलिस थाना बनाने की भी गुहार लगाई थी। इस बात को भी मानने से इंकार कर दिया है। जिम्मेदारों का कहना है कि कोविड के चलते ऐसी आर्थिक हालत नहीं है कि नया पुलिस थाना बनाया जाए। याचिकाकर्ता ने मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग को भी अप्रोच किया है।