दिल्ली में डेंगू के मामले बढ़ने लगे हैं। एम्स के सूत्रों के मुताबिक, इस बार भी डेंगू का डेन-2 और डेन-1 स्ट्रेन ज्यादा सक्रिय हैं। अब तक मरीजों में इन दोनों स्ट्रेन के मामले ही मिल रहे हैं। दरअसल, डेंगू के चार स्ट्रेन होते हैं। इनमें डेन-1, डेन-2, डेन-3, डेन-4 स्ट्रेन शामिल हैं।
एम्स के डॉक्टरों का कहना है कि डेन-2 स्ट्रेन वाला डेंगू अन्य के मुकाबले खतरनाक है। इसमें कुछ मरीजों के शॉक सिंड्रोम में जाने का खतरा होता है। इतना ही नहीं इसमें मरीज के शरीर का तापमान भी अधिक नहीं मालूम पड़ता। ऐसे में लक्षण पता न हो तो यह जानलेवा हो सकता है।
प्लेटलेट्स बढ़ना काफी नहीं : डॉक्टर ने कहा कि डेंगू के इलाज का मतलब केवल प्लेटलेट्स बढ़ाना नहीं है। जान तभी बचेगी जब मरीज का रक्तवाहिनियों में रिसाव ठीक होगा। मच्छर के काटे जाने के तीन से पांच दिनों बाद बुखार के लक्षण दिखने लगते हैं। मरीज को तरल पदार्थ जरूर देते रहें। बहुत कम मरीजों में प्लेटलेट्स इतनी कम हो पाती है कि वे जानलेवा बन जाए। शॉक सिंड्रोम के मामले अधिक जानलेवा हो सकते हैं। डॉक्टर ने बताया कि कुछ लोग देसी नुस्खे जैसे पपीते के पत्ते खाते हैं, अगर उन्हें उल्टी हो रही है तो यह बंद कर दें, क्योंकि शरीर में डिहाइड्रेशन होने से और ज्यादा नुकसान हो सकता है।
चार बार हो सकता है : डॉक्टर के मुताबिक, डेंगू के चार स्ट्रेन होते हैं, इसलिए कम-से-कम चार बार डेंगू होने का खतरा है। अगर किसी को डेंगू हुआ है तो अगली बार वह उसी स्ट्रेन से संक्रमित नहीं होगा, बाकी तीन स्ट्रेन में किसी से संक्रमित हो सकता है।
ब्लड प्रेशर की भी निगरानी जरूरी
मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर डॉक्टर आशुतोष विश्वास ने बताया कि प्लेटलेट्स की संख्या पर निगरानी से ज्यादा जरूरी हेमेटोक्रिट और ब्लड प्रेशर की निगरानी है। प्लाज्मा लीक होना जानलेवा हो सकता है। हेमेटोक्रिट रक्त में लाल रक्त कोशिकाओं की मात्रा का प्रतिशत है। पुरुषों के लिए यह 45 और महिलाओं के लिए 40 होता है। हेमेटोक्रिट बढ़ना यह बताता है कि कैपिलरी से खून में मौजूद प्लाज्मा का रिसाव होने लगा है। सीबीसी जांच कराने पर हेमेटोक्रिट कितना है, यह पता चल जाता है।
क्यों शॉक शिंड्रोम कहते हैं
एम्स के मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर डॉक्टर नीरज निश्चल के मुताबिक, शॉक सिंड्रोम में डेंगू का मरीज बेचैन हो जाता है और तेज बुखार के बावजूद त्वचा ठंडी महसूस होती है। मरीज धीरे-धीरे होश खोने लगता है। नाड़ी कभी तेज तो कभी धीरे चलती है। ब्लड प्रेशर एकदम कम हो जाता है। इससे मरीज शॉक में चला जाता है और महत्वपूर्ण अंगों में रक्त संचार कम हो जाता है। इसमें पेशाब भी कम आता है।