अफगानिस्तान में तालिबान राज को दुनिया से मान्यता दिलाने के लिए पाकिस्तान ने पूरी ताकत झोंक दी है। खुद तालिबान के नेता इतनी जल्दबाजी में नहीं है, जितनी बेचैनी में इमरान खान और उनकी सरकार है। पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मोईद यूसुफ ने कहा है कि दुनिया को ‘वेट एंट वॉच’ की पॉलिसी नहीं अपनानी चाहिए। उन्होंने इससे अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो जाने और आतंकवाद का खतरा बढ़ जाने का डर दिखाया है।
तालिबान ने मध्य अगस्त में पश्चिमी देशों की समर्थित निर्वाचित सरकार को बाहर करके अफगानिस्तान पर कब्जा जमा लिया। तालिबान की ओर से घोषित अंतरिम सरकार में कई खूंखार आतंकी भी शामिल हैं। भारत सहित दुनिया के अधिकतर देशों ने अफगानिस्तान को ‘वेट एंच वॉच’ की पॉलिसी अपनाई है और तालिबान को अभी मान्यता देने के मूड में नहीं हैं। सभी बड़े देशों ने कहा है कि वह तालिबान सरकार की मानवाधिकार और महिलाओं के प्रति रवैये को देखने के बाद ही फैसला लेंगे। हालांकि, पाकिस्तान में प्रधानमंत्री, मंत्री और सेना तालिबान के दूत, प्रवक्ता और वकील के रूप में काम कर रहे हैं।
यूसुफ ने कहा, ”इंतजार करो और देखो (अफगानिस्तान में नए निजाम के प्रति) का मतलब होगा बर्बादी।” उन्होंने यह भी कहा कि 1990 के दशक में भी यही गलती की गई थी। पश्चिमी नेताओं ने अपनी गलती को माना और इसे ना दोहराने की बात कही थी। यूसुफ ने कहा कि दुनिया के हित में यही है कि वे तालिबान से अपनी चिंता को लेकर खद बात करें, जिसमें आतंकवाद, मानवाधिकार और समावेशी सरकार या अन्य मुद्दे शामिल हैं।
इन दिनों पाकिस्तान से ज्यादा तालिबान की बात करने वाले यूसुफ ने कहा कि अफगानिस्तान को अकेला छोड़ देने पर यह भी आतंकवादियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह बन सकता है। उन्होंने कहा, ”यदि इसका त्याग कर दिया जाता है तो सुरक्षा को लेकर खालीपन पैदा होगा। आप पहले ही जानते हैं कि इस्लामिक स्टेट पहले से वहां मौजूद है, पाकिस्तानी तालिबान भी है। अलकायदा है। हम सुरक्षा खालीपन का जोखिम क्यों ले?” पाकिस्तान ने इससे पहले इसी महीने खुफिया एजेंसी आईएसआई के चीफ लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद को काबुल भेजा था।