कोविड-19 वैश्विक महामारी के दौरान जेलों में कैदियों की भीड़ कम करने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश की अध्यक्षता में गठित उच्चाधिकार प्राप्त प्राप्त समिति (एचपीसी) ने स्पष्ट किया है कि डकैती, लूट और फिरौती के लिए अपहरण जैसे अपराध कैदियों को अंतरिम जमानत देने के इसके मानदंडों के तहत नहीं आते हैं।
न्यायमूर्ति विपिन सांघी की अध्यक्षता वाली समिति ने यह स्पष्टीकरण दिया है, क्योंकि उच्च न्यायालय के न्यायमूर्तियों में से एक न्यायमूर्ति ने धारा 364 ए (फिरौती के लिए अपहरण), 394 (जानबूझकर चोट पहुंचाना) और धारा 397 (गंभीर चोट पहुंचाने के प्रयास के साथ डकैती या लूट) के तहत मुकदमे का सामना कर रहे विचाराधीन कैदियों को अंतरिम जमानत के लिए याचिका पर विचार कर रही पीठों के मार्गदर्शन के लिए इस मुद्दे को समिति के समक्ष रखने का आग्रह किया था ताकि परस्पर विरोधी आदेशों से बचा जा सके।
इस पर समिति ने आठ सितंबर को हुई बैठक के कार्य विवरणों में कहा कि केवल इसलिए कि निर्दिष्ट अपराध जैसे भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) के तहत अपराध, वह भी शर्त के साथ, अंतरिम जमानत देने के लिए अनुशंसित मामलों की श्रेणी में शामिल है, इसका मतलब यह नहीं है कि डकैती, लूट, फिरौती के लिए अपहरण जैसे अपराध आदि भी शामिल हैं।
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ऐसे मामलों को जानबूझकर बाहर रखा गया। क्योंकि इस तरह के अपराध अधिकांश अपराध प्रवृति की वजह से किए जाते हैं। एचपीसी ने कहा कि आयोजित विचार-विमर्श के मद्देनजर, यह सर्वसम्मति से स्पष्ट किया जाता है कि डकैती, लूट फिरौती के लिए अपहरण आदि जैसे अपराध इस समिति द्वारा चार मई, और 11 मई, 2021 की बैठकों में निर्धारित मानदंडों में शामिल नहीं हैं। ज्ञात रहे कि जेलों में भीड़ कम करने और वहां कोविड-19 के प्रसार को रोकने के उच्चतम अदालत के पिछले साल के निर्देश के मद्देनजर इस उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन किया गया था।