दिल्ली के तिहाड़ जेल के भीतर हुई अंकित गुर्जर की हत्या मामले की जांच अब सीबीआई करेगी। हाईकोर्ट ने बुधवार को अंकित की हत्या की जांच सीबीआई को सौंप दी है। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा है कि जेल की दीवारें कितनी भी ऊंची क्यों न हो लेकिन जेल की नींव कानून की व्यवस्था पर टिकी है, जिसमें भारत के संविधान में कैदियों के अधिकारों को भी सुनिश्चित किया गया है।
जस्टिस मुक्ता गुप्ता ने फैसले में कहा है कि यह अंकित गुर्जर के इन संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है जिसे तिहाड़ जेल में हुई हिंसा के कारण अपनी जान गंवानी पड़ी। उन्होंने जेल प्रशासन, मामले में पेश रिपोर्ट, जेल के डॉक्टरों की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाते हुए कहा कि यह सिर्फ कैदी की हत्या का मामला नहीं, बल्कि इससे जेल में कैदियों से जबरन धन उगाही का मामला भी जुड़ा है। ऐसे में मामले की जांच किसी निष्पक्ष एजेंसी से कराने की जरूरत है। मृतक अंकित की पोस्टमार्टम रिपोर्ट, उपाधीक्षक नरेन्द्र मीना और अन्य जेल कर्मचारियों के इस बयान को झूठलता है कि हाथापाई हुई थी जिसमें मीना और अंकित गुर्जर दोनों घायल हो गए थे।
कोर्ट ने कहा है कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट पर लिखे गए चोटों के निशान से साफ पता चलता है कि मृतक को बेरहमी से पीटा गया और जेल प्रशासन ने उसे जेल में लावारिस हालत में छोड़ दिया। पीठ ने अंकित के माता, भाई और बहन की ओर से दाखिल याचिका पर विचार करते हुए यह आदेश दिया है। इसके साथ ही कोर्ट ने मामले की जांच कर रही दिल्ली पुलिस को सभी संबंधित फाइल और रिपोर्ट सीबीआई को सौंपने का आदेश दिया है। कोर्ट ने सीबीआई को मामले की जांच अपने हाथ में लेने और अगली सुनवाई 28 अक्तूबर को जांच की स्थिति रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया है। जेल में बंद अंकित की 4 अगस्त को मौत हो गई थी। उसके शव पर गंभीर चोटों के निशान थे।
बचाई जा सकती थी जान
हाईकोर्ट ने मामले में जेल के डॉक्टरों की भूमिका पर भी सवाल उठाया है। कोर्ट ने कहा कि 3-4 अगस्त की रात करीब एक बजे अंकित ने शरीर में दर्द की शिकायत की तो ड्यूटी पर डॉक्टर और नर्सिंग कर्मचारी ने सिर्फ उसे दर्द की गोली दे दी। कोर्ट ने कहा है कि यदि समय रहते उचित इलाज और अस्पताल ले जाया गया होता तो अंकित की जान बचाई जा सकती थी। कोर्ट ने कहा है कि रिपोर्ट से साफ है कि अंकित की जेल में बर्बर तरीके से पिटाई की गई और उसे इलाज भी नहीं दिया गया। साथ ही कहा है कि न सिर्फ जेल उपाधीक्षक नरेन्द्र मीणा और अन्य कर्मचारियों ने अंकित के साथ बेरहमी से मारपीट की बल्कि जेल के डॉक्टर ने भी अपनी जिम्मेदारी नहीं निभायी।
जेल के डॉक्टरों की भूमिका की भी जांच होनी चाहिए
कोर्ट ने कहा है कि डॉक्टरों ने रात में अंकित की जांच की और उसे दर्ज का इंजेक्शन लगाया। डॉक्टर ने अंकित की हालत के बारे में वरिष्ठ अधिकारियों को सूचित नहीं किया और न ही उसे अस्पताल भेजा। साथ ही कहा कि यह बात कल्पना से परे है कि जेल के डॉक्टर ने मृतक के शरीर पर आई कई चोटों को नहीं देखा। फैसले में कहा गया है कि मृतक की बर्बर तरीके से पिटाई के अपराध की ही जांच की आवश्यकता नहीं है बल्कि सही वक्त पर उचित इलाज मुहैया नहीं कराने में जेल के डॉक्टरों की भूमिका की भी जांच होनी चाहिए। अदालत ने कहा कि अगर जेल में वसूली के परिवार के आरोप सही हैं तो यह बहुत गंभीर अपराध है जिसकी गहराई से जांच होनी चाहिए।
सीसीटीवी कैमरे के बारे में रिपोर्ट तलब
हाईकोर्ट ने सभी जेलों में सीसीटीवी कैमरों के समुचित संचालन प्रणाली को सुव्यवस्थित करने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में जेल महानिदेशक से रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा है। कोर्ट ने यह भी बताने के लिए कहा है कि जब तक सीसीटीवी कैमरे सही से काम नहीं कर रहे हैं, तब तक के लिए क्या वैकल्पिक प्रबंध किया जा सकता है। वहीं, कोर्ट ने कहा कि जेल के भीतर किसी तरह के संज्ञेय अपराध की सूचना मिलने पर पुलिस / जांच अधिकारी को तत्काल जेल के भीतर प्रवेश मिलना चाहिए। कोर्ट ने जेल महानिदेशक को इसके लिए जरूरी नियम और कानून बनाने का निर्देश दिया है।
जेल अधिकारियों पर पैसे मांगने का आरोप
मृतक अंकित की मां, भाई और बहन की ओर से अधिवक्ता महमदू प्राचा ने जेल अधिकारियों पर अंकित से जबरन पैसे की मांग करने का आरोप लगाया है। साथ ही कहा है कि दिनोंदिन बढ़ती पैसे की डिमांड को पूरा नहीं करने पर जेल अधिकारियों द्वारा अंकित को प्रताड़ित किया जाता था। अधिवक्ता प्राचा ने कहा कि जेल में उनके मुवक्किल के बेटे की सुनियोजित तरीके से हत्या की गई है। याचिका में कहा गया है कि घटना के बाद अंकित को बिना किसी चिकित्सा देखभाल के एक एकांत कक्ष में मरने के लिए छोड़ दिया गया। याचिका में जेल अधिकारियों पर जबरन वसूली के लिए सिंडिकेट चलाने का आरोप लगाया गया है। साथ ही याचिका में दिल्ली पुलिस पर असली गुनहगारों को बचाने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि जेल अधिकारियों द्वारा ऑनलाइन लेनदेन के माध्यम से पैसे की जबरन वसूली के पहलू की जांच नहीं की जा रही है।