नोएडा के सेक्टर-93ए स्थित सुपरटेक एमरॉल्ड में अवैध रूप से बने दो टावर के मामले में जांच करने सोमवार को एसआईटी नोएडा आएगी। संभवत: एसआईटी नोएडा प्राधिकरण के कार्यालय में ही आकर जांच करेगी। एसआईटी के सवालों का जवाब देने और उनको पूरा रिकॉर्ड मुहैया कराने के लिए प्राधिकरण ने तैयारी कर ली है।
सुपरटेक एमरॉल्ड में अवैध रूप से बने दोनों टावरों को गिराने का आदेश 31 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने दिया था। इस मामले में लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई करते हुए मुकदमा चलाने के आदेश दिए थे। इससे पहले वर्ष 2014 में हाइकोर्ट इन टावरों को गिराने का आदेश दे चुका है। मामले की गंभीरता को देखते हुए नोएडा प्राधिकरण की सीईओ ने दोनों एसीईओ की अध्यक्षता में कमेटी गठित कर जांच शुरू कर दी थी।
इस मामले में मुख्यमंत्री ने दो सितंबर को एसआईटी गठित करने का निर्णय लिया। इस समिति का अध्यक्ष औद्योगिक विकास आयुक्त एवं नोएडा-ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के चेयरमैन संजीव मित्तल को बनाया गया है जबकि सदस्य के रूप में ग्राम विकास एवं पंचायती राज विभाग के अपर मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह, मुख्य नगर एवं ग्राम नियोजक अनूप कुमार श्रीवास्तव और मेरठ जोन के अपर पुलिस महानिदेशक राजीव सब्बरवाल को सदस्य बनाया गया है।
एसआईटी की गठित करते समय मुख्यमंत्री ने एक सप्ताह के अंदर रिपोर्ट देने के निर्देश दिए थे। एसआईटी को गठित हुए तीन दिन का समय हो चुका है लेकिन अभी तक जांच शुरू नहीं हुई है। अब सोमवार को एसआईटी नोएडा आ रही है। प्राधिकरण अधिकारियों का कहना है कि सोमवार को टीम के प्राधिकरण कार्यालय में आकर ही जांच करने की उम्मीद है। संभावना है कि टीम दो दिन नोएडा में रहकर जांच कर सकती है। इसके बाद शासन को रिपोर्ट दे देगी।
अधिकारियों ने बताया कि टीम सुपरटेक एमरॉल्ड मामले में वर्ष 2004 में आवंटन के समय से लेकर 2012 तक में मानचित्रों में हुए बदलाव व आरटीआई का जवाब नहीं देने के मामले की जांच करेगी। नोएडा प्राधिकरण ने पूरे मामले की जांच न कर सिर्फ वर्ष 2009 व 2012 में हुए मानचित्रों में बदलाव व आरटीआई का जवाब नहीं देने के बिंदुओं पर जांच की थी।
एफएआर खरीद मुनाफे का खेल चलता रहा
सुपरटेक एमरॉल्ड मामले में बिल्डर ने दो बार एफएआर बढ़वाकर मुनाफे का खेल खेला। इसमें बिल्डर के साथ-साथ नोएडा प्राधिकरण के अधिकारी भी शामिल थे। एफएआर के रूप में शुल्क नोएडा प्राधिकरण के खाते में भी गया लेकिन एफएआर बेचेन के मामले में इससे ज्यादा अवैध रूप से कमाई तत्कालीन अधिकारियों ने की। बिल्डर ने दो बार में 23 करोड़ रुपये सरकारी शुल्क के रूप में देकर 1.5 से 2.75 तक एफएआर खरीदा। एफएआर बढ़ाने के लिए तीन बार ट्विन टावरों की योजना में बदलाव किया गया। इस परियोजना में प्राधिकरण ने ऊंचाई को नो लिमिट की श्रेणी में रखा। टावरों की स्वीकृत ऊंचाई 121 मीटर रखी गई।
सुपरटेक एमरॉल्ड को 23 नवंबर 2004 को सेक्टर-93 ए में 48263 वर्ग मीटर जमीन का आवंटन किया गया। इसके बाद 21 जून 2006 को प्राधिकरण ने 6556.51 वर्ग मीटर जमीन का आवंटन किया। इस दौरान सुपरटेक को 1.5 एफएआर दिया गया। नियम के तहत सिर्फ नए आवंटी को ही 2 से 2.75 एफएआर दिया जा सकता था। जानकारी के मुताबिक 19 नवंबर 2009 को बिल्डर के कहने पर दूसरी बार प्लान को रिवाइज करते हुए उसने 1.5 एफएआर का 33 प्रतिशत खरीदा। यानी अब एफएआर 1.995 हो गया।
यह एफएआर उसने आठ करोड़ रुपये में खरीदा। इसके बाद 26 नवंबर 2009 को प्राधिकरण ने दूसरा रिवाइज प्लान स्वीकृत कर दिया। ऐसा होने के साथ ही बिल्डर ने घर खरीदारों के समक्ष टी-16 टावर में ग्राउंड प्लस 11 और ग्राउंड प्लस एक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स के स्थान पर दोनों टावरों में ग्राउंड प्लस 24 फ्लोर के साथ 73 मीटर ऊंचाई का नया प्लान प्रस्तुत किया। इसी तरह सुपरटेक ने तीसरी बार परचेबल एफएआर के लिए प्राधिकरण में आवेदन किया। प्राधिकरण ने तीसरा रिवाइज प्लान पास कर दिया। इसके तहत दोनों टावरों को ग्राउंड प्लस 24 से बढ़ाकर 40 फ्लोर का कर दिया। साथ की, इसकी ऊंचाई 121 मीटर तय की गई। बिल्डर ने 25 अक्तूबर 2011 को 15 करोड़ देकर परचेबल एफएआर खरीदा। यानि एफएआर 1.995 से 2.75 कर दिया गया। इससे साफ है कि बिल्डर मुनाफे के लिए एफएआर खरीदता चला गया और अधिकारी अवैध रूप से कमाई करते चले गए। संबंधित दोनों टावरों के लिए अलग से प्रवेश और निकासी, स्विमिंग पूल, क्लब और बेसिक सुविधाएं दी जानी थीं। इसके अलावा एक दीवार भी बनाई जानी थी जो कि दोनों टावरों को अन्य टावरों से अलग करती।
2004 से 2017 तक सभी परियोजनाओं की भी हो सकती है जांच
अधिकारिक सूत्रों की मानें तो एसआईटी की जांच का दायरा बढ़ा दिया गया है। अब सुपरटेक एमरॉल्ड के साथ-साथ वर्ष 2004 से 2017 तक जितनी भी परियोजनाओं के मानचित्रों में बदलाव किया गया और एफएआर में फेरबदल किया गया, उन सभी परियोजनाओं की जांच एसआईटी करेगी। हालांकि, नोएडा प्राधिकरण के अधिकारी फिलहाल सुपरटेक मामले में ही एसआईटी के जांच करने की बात कह रहे हैं।
ठीक तरह से जांच हुई तो नपेंगे सीईओ स्तर के अधिकारी भी
अन्य परियोजनाओं को छोड़ सुपरटेक एमरॉल्ड मामले की ही अगर ठीक ढंग से जांच हुई तो इस मामले में सीईओ स्तर तक के अधिकारी नपेंगे। हालांकि, यह अलग बात है कि मानचित्र में बदलाव की अनुमति उस समय समिति लेती थी, ऐसे में सीईओ के हस्ताक्षर नहीं हैं लेकिन एफएआर की मंजूरी सीईओ व बोर्ड बैठक तक में होती है। इस मामले में वर्ष 2006 में पहली बार मानचित्र में बदलाव के समय सीईओ संजीव शरण, दूसरी बार 2009 में मानचित्र में बदलाव के समय सीईओ मोहिंदर सिंह व तीसरी बार 2012 में बदलाव के समय सीईओ कैप्टन एस के द्विवेदी थे। अब देखना है कि एसआईटी नोएडा प्राधिकरण की ओर से भेजे गए आठ नामों पर ही अपनी रिपोर्ट शासन को देगी या उससे आगे जाकर ओएसडी, एसीईओ व सीईओ को भी जांच के घेरे में लाएगी।
आज एसआईटी जांच करने नोएडा प्राधिकरण आएगी। प्राधिकरण की प्रारंभिक रिपोर्ट के आधार पर ही एसआईटी का गठन किया गया है। सुपरटेक एमरॉल्ड से संबंधित, जो भी रिकॉर्ड टीम मांगेगी, उसे मुहैया कराया जाएगा।
रितु माहेश्वरी, सीईओ, नोएडा प्राधिकरण