फरवरी 2020 के दिल्ली दंगों की साजिश के मामले में कड़े आतंकवाद रोधी कानून यूएपीए के तहत गिरफ्तार जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद ने अपनी जमानत याचिका वापस ले ली है और एक नयी अर्जी दायर की है क्योंकि दिल्ली पुलिस ने उक्त अर्जी की विचारणीयता पर आपत्ति जतायी थी।
खालिद की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता त्रिदीप पेस ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत को बताया कि पुलिस की आपत्ति के बाद दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 439 के तहत जमानत के अनुरोध वाली अर्जी को धारा 437 के तहत अर्जी से बदल दिया गया है।
पुलिस का प्रतिनिधित्व कर रहे विशेष लोक अभियोजक अमित प्रसाद ने उस नयी याचिका पर आपत्ति जतायी, जिसमें अभियोजन पर कथित तौर पर “लंबी रणनीति” अपनाने का आरोप लगाया गया था और इसे ”उचित नहीं कहा गया।
अभियोजक ने कहा, ”आपने जो अंतरिम आवेदन दायर किया है, उसमें आपने कुछ आरोप लगाए हैं कि अभियोजन पक्ष द्वारा की गई आपत्तियां देरी करने वाली रणनीति हैं। इसलिए, अभियोजन पक्ष को मामले में विलंब करने का हथकंडा अपनाने वाले के रूप में चित्रित करना उचित नहीं है।”
प्रसाद की दलील थी कि यह अदालत यूएपीए कानून के तहत नामित विशेष अदालत में सुनवाई वाली अर्जी पर विचार कर रही है और इसलिए वह दंड प्रक्रिया की कठोर धाराा 437 के अंतर्गत उन सभी अधिकारों का प्रयोग करती है जो मजिस्ट्रेट की अदालत को प्राप्त हैं।
एएसजे रावत ने नयी जमानत अर्जी पर पुलिस से जवाब मांगा और मामले की अगली सुनवायी आठ सितंबर के लिए निर्धारित कर दी।
गत तीन सितंबर को जमानत याचिका पर पिछली सुनवाई में खालिद ने अदालत को बताया था कि मामले में आरोपपत्र में बिना किसी तथ्यात्मक आधार के अतिशयोक्तिपूर्ण आरोप लगाए गए हैं और यह किसी वेब सीरीज और न्यूज चैनलों की पटकथा की तरह है।
खालिद सहित कई अन्य लोगों पर इस मामले में आतंकवाद रोधी कानून के तहत मामला दर्ज किया गया है। उन पर फरवरी 2020 की हिंसा का ”मुख्य षड्यंत्रकर्ता होने का आरोप है, जिसमें 53 लोग मारे गए थे और 700 से अधिक घायल हो गए थे। खालिद ने मामले में जमानत मांगी है।