रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने तालिबान और अफगानिस्तान को लेकर अपनी बात रखी है। पुतिन ने कहा है कि उन्हें उम्मीद है कि अफगानिस्तान में तालिबान ‘सभ्य’ तरीके से पेश आएगा ताकि दुनिया के देश काबुल के साथ राजनयिक संबंध बनाए रख सकें। उन्होंने साफ़ कहा कि रूस का अफगानिस्तान के विघटन में कोई दिलचस्पी नहीं है क्योंकि अगर ऐसा होता है तो फिर कोई बात करने वाला नहीं रह जाएगा।
पुतिन ने कहा है कि तालिबान जितनी जल्दी सभ्य तरीके से लोगों से जुड़ेगा, उतना ही बोलना, संवाद करना, संपर्क करना और सवाल पूछना आसान होगा। रूस तालिबान सरकार को मान्यता देने में कोई जल्दबाजी नहीं कर रहा है लेकिन काबुल में रूस के राजदूत ने कहा है कि मॉस्को अफगानिस्तान में अपना दूतावास बनाए रखेगा।
हाल ही में पुतिन ने अफगानिस्तान मसले को लेकर अमेरिका को जमकर कोसा था। उन्होंने कहा था कि अफगानिस्तान में अमेरिकी सैन्य हस्तक्षेप से सभी पक्षों को नुकसान पहुंचा है। अमेरिका ने नुकसान के अलावा कुछ भी नहीं हासिल किया है। अमेरिकी सेना अफगानिस्तान में 20 सालों तक रही। उस 20 सालों में उन्होंने अफगानिस्तान के लोगों को अमेरिकी सभ्यता सिखाने की नाकाम कोशिश की। इस पूरे मामले का नतीजा अगर नकारात्मक नहीं है तो शून्य है।
रूस की सिरदर्दी बढ़ गई है?
अमेरिका का अफगानिस्तान से निकलने के बाद से रूस की सिरदर्दी भी बढ़ी हुई है। रूस नहीं चाहता है कि मध्य एशिया में कट्टरपंथी इस्लाम का फैलाव हो। और यही कारण है कि रूस ने ताजिकिस्तान जैसे देशों को तालिबान से सुरक्षा का भरोसा दिया है। इसी कड़ी में रूस ने ताजिकिस्तान स्थित अपने मिलिट्री अड्डे को मजबूत किया है और ताजिकिस्तान के बॉर्डर इलाके में सैन्य अभियास में जुटा हुआ है।
रूसी सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों ने सुरक्षा प्रमुखों को मध्य एशिया में अस्थिरता, तालिबान के फैलाव, चरमपंथियों के संभावित घुसपैठ, अफगानिस्तान के अफीम उत्पादन को लेकर अलर्ट कर दिया है।