स्वतंत्रता दिवस पर राजधानी में किसान आंदोलन से संबंधित कोई भी कार्यक्रम नहीं करने के किसान नेताओं के ऐलान के बावजूद दिल्ली की सीमा पर सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं।
पुलिस सूत्रों ने शनिवार को बताया कि किसान नेताओं ने रविवार को भले ही दिल्ली में कार्यक्रम नहीं करने तथा धरनास्थलों पर ही शांतिपूर्ण तरीके से ध्वजारोहण कर आजादी के जश्न में शामिल होने की बात कही है, लेकिन पिछला अनुभव उसके उलट है। यही वजह है कि राजधानी की सीमाओं पर 26 जनवरी की तुलना में अधिक सतर्कता बरती जा रही है ताकि पिछली बार की तरह की दुभार्ग्यपूर्ण घटना को अंजाम देने का मौका किसी को न मिले।
उन्होंने बताया कि दिल्ली पुलिस के जवानों के अलावा केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की अतिरिक्त तैनाती के साथ ही अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से सुरक्षा निगरानी की व्यवस्था की गई है। एहतियातन ऐसी अभेद्य सुरक्षा की व्यवस्था की गई है कि स्वतंत्रता दिवस समारोहों के दौरान किसी स्तर पर भी खलल पड़ने की गुंजाइश नहीं है।
उन्होंने बताया कि यह सही है कि गत दिनों ‘समानांतर किसान संसद’ के दौरान कई किसान नेताओं ने स्वतंत्रता दिवस पर जंतर-मंतर कार्यक्रम स्थल पर तिरंगा फहराने का ऐलान किया था, लेकिन संसद सत्र के निर्धारित अवधि से पूर्व समाप्त होने के बाद उन्होंने भी अपना ‘सत्र’ समाप्त कर दिया और पूरा इलाका खाली कर दिया। इसके बाद किसी संगठन की ओर से कोई कार्यक्रम करने की अनुमति नहीं ली गई है।
किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष पुष्पेंद्र चौधरी ने कहा कि दिल्ली की सीमाओं पर महीनों से धरना दे रहे आंदोलनकारी किसानों का 15 अगस्त को दिल्ली की सीमा में प्रवेश करने का कोई इरादा नहीं है। वे धरनास्थलों पर ही तिरंगा झंडा लहराकर राष्ट्रीय त्योहार में शामिल होंगे। इसके बाद जगह-जगह रैलियां निकालकर अपनी आवाज सरकार तक पहुंचाने का सिलसिला जारी रहेगा।
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उन्होंने बताया दिल्ली की सीमाओं से बाहर रैली, ट्रैक्टर रैली, मोटरसाइकिल रैली एवं अन्य कार्यक्रमों के माध्यम से किसान अपनी आवाज बुलंद करेंगे। सभी कार्यक्रम शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न होंगे। शरारती तत्वों को मौका नहीं मिले, इसके लिए अधिक से अधिक सतर्कता बरती जा रही है।
गौरतलब है कि इस वर्ष गणतंत्र दिवस पर किसानों की ट्रैक्टर रैली अनियंत्रित हो गई थी। पुलिस एवं आंदोलनकारियों के बीच हिंसक घटनाओं में अनेक किसान एवं पुलिस कर्मी घायल हुए थे। एक युवा किसान की मृत्यु हो गई थी। बड़ी संख्या में किसान लाल किला पहुंच गए थे।