पेगासस फोन हैकिंग विवाद अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। शुक्रवार को शीर्ष अदालत ने पेगासस विवाद की स्वतंत्र जांच की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई का फैसला लिया। अदालत ने इस याचिका पर अगले सप्ताह सुनवाई करने की बात कही है। वरिष्ठ पत्रकार एन. राम और शशि कुमार की ओर से दायर अर्जी पर वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने अपना पक्ष रखा। उनका पक्ष सुनने का बाद शीर्ष अदालत ने अगले सप्ताह अर्जी पर सुनवाई की बात कही। प्रधान न्यायाधीश एन वी रमन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष पेश कपिल सिब्बल ने कहा कि कथित जासूसी के व्यापक असर को देखते हुए इस पर सुनवाई की जरूरत है।
इस पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘हम इसे अगले हफ्ते के लिए सूचीबद्ध करेंगे।’ याचिका में कहा गया कि कथित जासूसी भारत में विरोध की स्वतंत्र अभिव्यक्ति को दबाने और हतोत्साहित करने के एजेंसियों एवं संगठनों के प्रयास की बानगी है। गौरतलब है कि एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया संघ ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 300 से अधिक सत्यापित भारतीय मोबाइल फोन नंबरों को इजराइल के पेगासस स्पाइवेयर के जरिए निगरानी के लिए संभावित लक्ष्यों की सूची में रखा गया। यह अर्जी 27 जुलाई को दायर की गई थी, जिसमें किसी मौजूदा या फिर रिटायर्ड जज की अगुवाई में मामले की जांच कराने की मांग की गई है।
अर्जी में कहा, निजता और अभिव्यक्ति के अधिकार का उल्लंघन है स्पायवेयर का इस्तेमाल
यही नहीं जनहित याचिका में यह मांग भी की गई है कि सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार को आदेश दे कि वह बताए कि आखिर उसने पेगासस स्पायवेयर का इस्तेमाल करने का आदेश लिया है या नहीं। याचिका में कहा गया है कि यह मिलिट्री स्पायवेयर है और इसका आम नागरिकों पर इस्तेमाल होना स्वीकार नहीं किया जा सकता। अर्जी में कहा गया है कि इस तरह की जासूसी निजता के अधिकार का उल्लंघन है, जिसे संविधान के आर्टिकल 14 में मूल अधिकार बताया गया है। इसके अलावा अभिव्यक्ति और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकारों का भी यह हनन है।