डिमेंशिया को आमतौर पर बुजुर्गावस्था की बीमारी माना जाता है। मगर अमेरिकी शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक हालिया अध्ययन की मानें तो डिमेंशिया के पांच प्रतिशत मामले उन लोगों में पाए जाते हैं, जो अभी बुजुर्गावस्था की दहलीज से कहीं दूर होते हैं। यानी युवा वयस्कों में भी इस गंभीर बीमारी का जोखिम बढ़ रहा है।
95 अंतर्राष्ट्रीय पूर्व अध्ययनों के आधार पर शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया कि दुनियाभर में लगभग 4 मिलियन (40 लाख) लोग युवावस्था के दौरान ही डिमेंशिया का शिकार हो रहे हैं। अध्ययन में पाया गया कि 30 से 64 वर्ष की आयु के बीच लोगों में ऐसे मामले देखे जा रहे हैं। अमेरिका में अनुमानित रूप से 1,75,000 लोगों में यह स्थिति है। देशभर में डिमेंशिया के सभी मामलों का यह लगभग तीन प्रतिशत है।
न्यूरोलॉजिस्ट डॉ डेविड नोपमैन ने कहा कि इस संदर्भ में इसका मतलब है कि युवावस्था में डिमेंशिया होना दुर्लभ है। लेकिन डॉक्टरों सहित अन्य लोगों के लिए यह जानना महत्वपूर्ण है कि डिमेंशिया जीवन में असामान्य रूप से जल्दी भी आ सकता है। उन्होंने कहा कि युवावस्था अथवा बुजुर्गावस्था से पहले के पड़ाव में डिमेंशिया इतना असामान्य है कि अधिकांश डॉक्टरों, जिनमें न्यूरोलॉजिस्ट भी शामिल हैं, उन्हें इसका निदान करने में बहुत कम या फिर कोई भी अनुभव नहीं है।
बढ़ती उम्र से जुड़ा है रोग
डिमेंशिया आमतौर पर उम्र बढ़ने से जुड़ा होता है, इसलिए युवा लोगों की याददाश्त संबंधी समस्याओं को उन स्थितियों के लिए जिम्मेदार ठहराना स्वाभाविक है, जो बुजुर्गों के आयु वर्ग में कहीं अधिक सामान्य हैं। नोपमैन ने कहा कि उनके लक्षण अक्सर अवसाद या चिंता से जुड़े होते हैं। उन्होंने कहा कि युवा रोगियों में अधिकांश याददाश्त संबंधी समस्याएं शायद उन स्थितियों से संबंधित हैं।
भारत में भी मरीजों की तादाद काफी ज्यादा
भारत में भी डिमेंशिया रोगियों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। एक पूर्व अध्ययन के मुताबिक, देश में 40 लाख से अधिक लोगों को किसी न किसी प्रकार का डिमेंशिया है। वहीं दुनियाभर में इस रोग से पीड़ित लोगों की अगर बात करें तो विश्वभर में करीब पांच करोड़ लोग डिमेंशिया से ग्रस्त हैं, जो इस रोग को एक वैश्विक स्वास्थ्य संकट बनाते हैं जिसे संबोधित किया जाना ज़रूरी है। यह तेजी से अपना आकार बढ़ाकर लोगों को अपनी जद में लेता जा रहा है। गौरतलब है कि किसी को भी अल्ज़ाइमर रोग या किसी और प्रकार के डिमेंशिया का केवल अकेले ही सामना नहीं करना पड़ता है उससे उसका पूरा का पूरा परिवार प्रभावित होता है।