अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी के साथ ही तालिबानी आतंकी अफगान सुरक्षा बलों पर भारी पड़ गए हैं। कंधार के अपने पूर्व गढ़ के साथ ही तालिबान ने एक तिहाई जिलों पर कब्जा करने का दावा किया है। ऐसे में पड़ोसी देश इससे बचे रहने के लिए अफगान सीमाओं पर चौकन्ने हो गए हैं। लेकिन पहले से आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट से जूझ रहे इराक का कहना है कि उसे अब आतंक से लड़ने के लिए अमेरिकी सेना की कोई जरूरत नहीं।
‘हमारी जमीं पर विदेशी सेना की जरूरत नहीं’
दरअसल, इराक के प्रधानमंत्री मुस्तफा अल-कादिमी ने कहा कि उनके देश को आतंकवादी समूह इस्लामिक स्टेट से लड़ने के लिए अब अमेरिकी सेना की आवश्यकता नहीं है। लेकिन उनकी पुन: तैनाती के लिए फॉर्मल टाइम लिमिट इस हफ्ते अमेरिकी अधिकारियों के साथ बातचीत के नतीजे पर निर्भर करेगी। अल-कादिमी ने कहा कि इराक को फिर भी अमेरिका की ट्रेनिंग और मिलिट्री इंटैलिजेंस सर्विसेज की आवश्यकता पड़ेगी। उन्होंने वाशिंगटन की यात्रा के मद्देनजर एक इंटरव्यू में यह बयान दिया। उनका रणनीतिक वार्ता के चौथे फेज के लिए सोमवार को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन से मुलाकात करने का कार्यक्रम है। अल-कादिमी ने कहा, इराक की सरजमीं पर किसी भी विदेशी सेना की आवश्यकता नहीं है।
‘हम अपने देश की रक्षा करने में सक्षम’
कादिमी ने अमेरिकी सेना की वापसी के लिए कोई समय सीमा नहीं बतायी। उन्होंने कहा कि इराकी सुरक्षाबल और सेना अमेरिका के नेतृत्व वाली गठबंधन सेना के बिना देश की रक्षा करने में सक्षम हैं। हालांकि, उन्होंने ये भी कहा कि सेना की वापसी इराकी बलों की आवश्यकता पर निर्भर करेगी। उन्होंने कहा, ”इस्लामिक स्टेट के खिलाफ युद्ध और हमारी सेना की तैयारी को विशेष टाइमलाइन की जरूरत है और यह वाशिंगटन में होने वाली बातचीत पर निर्भर करेगा।”
साल के अंत तक अमेरिकी सेना की वापसी
सोमवार को व्हाइट हाउस में दोनों नेताओं के बीच मुलाकात में इस समय सीमा को स्पष्ट किए जाने की संभावना है। ऐसी उम्मीद है कि इस साल के अंत तक इराक से अमेरिकी सेना की वापसी हो सकती है। इराक में अमेरिका के 2,500 सैनिक मौजूद हैं। पिछले साल पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 3,000 सैनिकों को वापस बुलाने का आदेश दिया था। गौरतलब है कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने 2014 में इराक में सेना भेजने का फैसला किया था। आतंकवादी समूह इस्लामिक स्टेट के पश्चिमी और उत्तरी इराक के बड़े हिस्से पर कब्जा जमाने के बाद ओबामा ने यह फैसला लिया था।