दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को पुलिस से उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों के सिलसिले में गिरफ्तार ‘आप’ के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन की एक याचिका पर जवाब देने को कहा है, जिसमें चार्जशीट में उस पर लगाए गए आतंकी गतिविधियों से संबंधित यूएपीए प्रावधानों को रद्द करने की मांग की गई थी।
जस्टिस मुक्ता गुप्ता ने उस याचिका पर केंद्र, दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया, जिसमें ताहिर हुसैन ने गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत दर्ज मामले में मुकदमा चलाने की मंजूरी को चुनौती दी थी।
हाईकोर्ट ने कहा कि अधिकारियों द्वारा चार सप्ताह के भीतर एक जवाब हलफनामा या स्टेटस रिपोर्ट दायर की जाए और मामले को आगे की सुनवाई के लिए 28 सितंबर को सूचीबद्ध कर दिया।
ताहिर हुसैन की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील मोहित माथुर ने हाईकोर्ट को बताया कि हालांकि चार्जशीट में ताहिर के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों से संबंधित प्रावधान लागू किए गए हैं, लेकिन यह दिखाने के लिए कुछ भी नहीं है कि उनका कार्य एक आतंकवादी का था।
वकील माथुर ने कहा कि सिर्फ सड़क जाम, चक्का जाम और असहमति की अभिव्यक्ति को आतंकवादी गतिविधियों के रूप में लिया गया है। ताहिर हुसैन ने दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच द्वारा दायर चार्जशीट में लागू धारा- 13 (गैरकानूनी गतिविधियों के लिए सजा), 15 (आतंकवादी अधिनियम), 16 (आतंकवादी कृत्य के लिए सजा) और 18 (साजिश के लिए सजा) सहित यूएपीए प्रावधानों को अलग करने की मांग की है।
यूएपीए मामले में दायर चार्जशीट एक कथित बड़ी साजिश से संबंधित है जिसके कारण सीएए के विरोध प्रदर्शनों के दौरान उत्तर-पूर्वी दिल्ली में दंगे हुए थे।
वहीं, दिल्ली पुलिस और केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर अमित महाजन ने कहा कि निचली अदालत ने पिछले साल सितंबर में चार्जशीट पर पहले ही संज्ञान ले लिया था। उन्होंने कहा कि आरोपी ने योग्यता के आधार पर उन पर मुकदमा चलाने के लिए अधिकारियों द्वारा दी गई मंजूरी को चुनौती दी है, जिसे निचली अदालत में दायर किया जाना चाहिए था।
ताहिर हुसैन पिछले साल उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए साम्प्रदायिक दंगों के संबंध में दिल्ली पुलिस द्वारा दर्ज किए गए विभिन्न मामलों में मुकदमों का सामना कर रहे हैं, जिनमें भारतीय दंड संहिता और शस्त्र अधिनियम के तहत हत्या के प्रयास और दंगा करने के कथित अपराध शामिल हैं।
गौरतलब है कि बीते साल 24 फरवरी को उत्तर-पूर्वी दिल्ली में नागरिकता संशोधन कानून के समर्थकों और प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसा के नियंत्रण से बाहर होने के बाद सांप्रदायिक झड़पें हुई थीं, जिसमें कम से कम 53 लोग मारे गए और लगभग 700 लोग घायल हो गए थे।