राजद्रोह कानून को औपनिवेशिक काल की देन बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से सवाल किया है कि आखिर इसे हटाया क्यों नहीं जा रहा। शीर्ष अदालत ने गुरुवार को मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि यह देश में आजादी के आंदोलन को कुचलने के लिए अंग्रेजों की ओर से बनाया गया कानून था। उच्चतम न्यायालय ने राजद्रोह पर ‘औपनिवेशिक-काल’ के दंडात्मक कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए केंद्र से जवाब मांगा है। कोर्ट ने कहा कि उसकी चिंता कानून के दुरुपयोग को लेकर है और उसने केंद्र से सवाल किया कि वह राजद्रोह पर औपनिवेशिक काल के कानून को समाप्त क्यों नहीं कर रहा।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने इस कानून के बने रहने पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा, ‘राजद्रोह कानून का मकसद स्वतंत्रता संग्राम को दबाना था, जिसका इस्तेमाल अंग्रेजों ने महात्मा गांधी और अन्य को चुप कराने के लिए किया था। हालांकि सुप्रीम कोर्ट में अटॉर्नी जनरल ने कहा कि राजद्रोह कानून का दुरुपयोग रोकने के लिए कुछ दिशानिर्देश निर्धारित किए जा सकते हैं। उन्होंने प्रावधान की वैधता का बचाव किया। कोर्ट ने कहा कि ऐसे वक्त में जब पुराने तमाम कानूनों को हटाया जा रहा है, तब इसकी क्या जरूरत है।
चीफ जस्टिस एनवी नमन्ना की बेंच ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि हमारी मुख्य चिंता इस कानून के दुरुपयोग को लेकर है। आईपीसी की धारा 124 A (राजद्रोह) को चुनौती देते हुए पूर्व सैन्य अधिकारी मेजर जनरल एसजी वोम्बाटकेरे ने याचिका दायर की थी। उनका कहना है कि इस कानून का इस्तेमाल कर अभिव्यक्ति की आजादी को कई बार रोका जाता है। इस पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि इसे अंग्रेजों की ओर से बनाया गया था ताकि महात्मा गांधी समेत तमाम स्वतंत्रता सेनानियों की आवाज को बंद किया जा सके। इस पर अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि यदि इसके बेजा इस्तेमाल को लेकर चिंता है तो फिर कुछ प्रावधानों को हटाया जा सकता है। हालांकि उन्होंने कानून को पूरी तरह से खत्म करने पर सहमति नहीं जताई।
क्या है राजद्रोह कानून और उसके क्या हैं प्रावधान
भारतीय दंड संहिता की धारा 124A के मुताबिक यदि कोई व्यक्ति शब्दों, लेखन, चिह्नों, दृश्य माध्यम या फिर अन्य किसी माध्यम से भारत में कानून के तहत बनी सरकार के खिलाफ विद्रोह को भड़काता है तो उसे उम्रकैद तक की सजा दी जा सकती है। इसके अलावा जुर्माना भी लगाया जा सकता है। इस धारा के तहत यदि कोई अपराध करता है तो वह गैर-जमानती होगा। बता दें कि 1962 में केदारनाथ यादव बनाम बिहार सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून को बनाए रखा था।