नौजवानों को आतंक के रास्ते पर ढकेलने के लिए ऑनलाइन ट्रेनिंग दी जा रही है। यूपी में स्लीपर सेल बनाने के लिए पड़ोसी देश में बैठे आतंकी आकाओं के इशारे पर हैण्डलर पीर-टू-पीर मैसेजिंग एप का इस्तेमाल कर अपना संदेश पहुंचा रहे हैं। इन्हीं एप के जरिए आतंकी साजिश को रचने से लेकर उसे अंजाम देने तक की जानकारी हैण्डलर स्लीपर सेल तक पहुंचा रहे हैं।
एंड्रायड प्लेटफार्म पर मौजूद हैं कई एप
सीएए को लेकर हुए हिंसक प्रदर्शन में बड़े पैमाने पर सोशल मीडिया प्लेटफार्म का इस्तेमाल किया गया था। इसका खुलासा लखनऊ पुलिस ने पीएफआई संगठन से जुड़े लोगों को गिरफ्तार करने के बाद किया था। वहीं, एटीएस ने जून 2020 में बरेली के कटघर से अंसार गजवातुल हिंद से जुड़े इनामुल हक को गिरफ्तार किया था। जिसने सोशल मीडिया प्लेटफार्म का इस्तेमाल कर स्लीपर सेल तैयार करने की बात कबूल की थी।इनामुल का दावा था कि उसने टेलीग्राम एप पर चैनल बना कर कट्टरपंथी विचारधारा वाले लोगों को जोड़ा था। जिन्हें हिंसा से जुड़े मैसेज और वीडियो भेजे जाते थे।
इसके साथ ही पड़ोसी देश में बैठे हैण्डलरों की तरफ से मुहैया कराया गया साहित्य भी नौजवानों को बांटा जाता था। साइबर एक्सपर्ट बताते हैं कि टेलीग्राम के अलावा भी कई एप हैं। लेकिन सुरक्षा कारणों से इन एप का नाम साझा नहीं किया जा सकता है। विशेषज्ञों के मुताबिक विशेष तौर पर एंड्रायड प्लेटफार्म पर इनक्रिप्टेड एप मौजूद हैं। जो आसानी से डाउनलोड किए जा सकते हैं। इन एप के जरिय की गई चैटिंग एण्ड-टू-एण्ड पर इनक्रिप्टेड होती है। जिसकी वजह से भेजे गए मैसेज को डिकोड करना काफी मुश्किल होता है।
खुरासान माड्यूल से जुड़े युवकों पर निगाह
7 मार्च 2017 को काकोरी स्थित हाजी कॉलोनी में एटीएस ने कमांडो ऑपरेशन कर खुरासान माड्यूल से जुड़े सैफुल्ला को ढेर कर दिया था।उसके कई साथी गिरफ्तार हुए थे। जांच एजेंसी ने गौस मोहम्मद, दानिश, फैसल, अजहर और फखरे समेत कई लोगों को पकड़ा था। जिन्होंने खुरासान माड्यूल के तहत तैयार किए गए स्लीपर सेल के बारे में जानकारी दी थी। चिह्नित युवकों को आतंक के रास्ते से वापस लाने के लिए एटीएस ने डी-रेडिक्लाइजेशन अभियान शुरू किया था। लेकिन अब ये युवक कहां है। इस बारे में किसी को भी जानकारी नहीं है। ऐसे में आशंका है कि यह लोग फिर से कट्टरपंथी विचारधारा से प्रेरित होकर गलत रास्ते पर जा सकते हैं।