कोरोना संक्रमण से सुरक्षा देने के लिए दुनिया का पहला डीएनए आधारित टीका ‘जायकोव-डी’ लगभग तैयार हो चुका है, जिसे भारतीय कंपनी जायडस-कैडिला ने बनाया है। खास बात यह है कि यह टीका जुलाई के अंत तक मंजूरी के बाद देश में बच्चों के लिए उपलब्ध हो जाएगा।
जायकोव-डी की खासियत
1. वायरस के आनुवंशिक कोड से तैयार
एक डीएनए वैक्सीन के जरिए इंसानी शरीर में वायरस के उस हिस्से के आनुवंशिक कोड (डीएनए या आरएनए) को भेजा जाता है जो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को उत्तेजित करती है। तब इंसानी शरीर की मशीनरी उस आनुवांशिक कोड को डिकोड करके वायरस को पहचानकर उससे लड़ने के लिए एंटीजन पैदा करती है।
2 . हमलावर वायरस की पहले से पहचान
डिकोडिंग के जरिये यह सुनिश्चित होता है कि जब बाद में किसी वास्तविक वायरस का शरीर पर हमला होगा तो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली पहले से ही इसे पहचानने के लिए तैयार रहेगी और उसे पता होगा कि इस हमले से लड़ने का सबसे प्रभावी तरीका क्या है।
3. तीन खुराकों वाली वैक्सीन
जायकोव-डी की तीन खुराकें लेनी होंगी, अभी यह स्पष्ट नहीं है कि इनके बीच कितना अंतर रखा जाएगा। संभवता: यह दुनिया का पहला ऐसा टीका होगा जिसमें तीन डोज होंगी।
परंपरागत वैक्सीन से अलग
परंपरागत वैक्सीन बनाने के लिए उसे अधिक ताप या रसायन के इस्तेमाल से पहले निष्क्रिय करते हैं, फिर शरीर में डालते हैं। खसरा, चेचक और पोलियो के टीके इसका उदाहरण हैं।
जुलाई अंत तक आएगी
गुजरात की कंपनी जायडस कैडिला जो टीका बना रही है, उसका नाम ‘जायकोव-डी’ है। टीकाकरण पर राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह (एनटीएजीआई) के प्रमुख डॉ. एनके अरोड़ा का कहना है कि इसका परीक्षण जुलाई अंत तक पूरा हो जाएगा और अगस्त तक इस्तेमाल के लिए इसके उपलब्ध होने की उम्मीद है।
-05 करोड़ खुराकें जायकोव-डी कोविड वैक्सीन की इस साल देश को मिलेंगी।
-02 जायडस-कैडिला का बनाया यह टीका भारत का दूसरा स्वदेशी टीका होगा।
-03 खुराकों वाला होगा यह टीका जो भारत में 12 से 18 साल की उम्र के बच्चों को लगेगा।