पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव खत्म होने के बाद भी राज्य की राजनीति में लगातार हलचल मची हुई है। पहले तृणमूल कांग्रेस के मंत्रियों समेत नेताओं की गिरफ्तारी से विवाद हुआ तो बाद में पूर्व मुख्य सचिव अलापन बंदोपाध्याय के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बैठक में देरी से जाने को लेकर विवाद खड़ा हो गया। यहां तक कि केंद्र सरकार ने पूर्व मुख्य सचिव को नोटिस तक भेज दिया। सूत्रों के अनुसार, बंगाल बीजेपी में दोनों घटनाओं को लेकर अलग-अलग राय हैं। बीजेपी नेताओं का एक वर्ग दोनों मामलों में केंद्र का समर्थन करता है, लेकिन एक अन्य वर्ग, जिसमें पुराने नेता शामिल हैं, का मानना है कि राज्य में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के सत्ता में वापस आने के एक महीने के भीतर उन्होंने पार्टी के खिलाफ जनभावना को बदल दिया है।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सोमवार को बंदोपाध्याय को अपना मुख्य सलाहकार नियुक्त किया था, क्योंकि केंद्र सरकार ने बैठक विवाद के बाद उनका ट्रांसफर दिल्ली कर दिया था। ममता बनर्जी ने उन्हें मुख्य सचिव पद से रिटायरमेंट दिलवाते हुए अपना मुख्य सलाहकार बना लिया। केंद्र सरकार ने बंदोपाध्याय को बैठक न करने पर आपदा प्रबंधन अधिनियम की धारा 51(बी) के तहत नोटिस भी भेजा है। इस धारा में दो साल तक की कैद का प्रावधान है। बनर्जी ने राज्य में बीजेपी पर राजनीतिक प्रतिशोध का आरोप लगाया है और बुधवार को कहा कि राज्य बंदोपाध्याय के साथ खड़ा है। माना जा रहा है कि पूर्व मुख्य सचिव बंदोपाध्याय गुरुवार को केंद्र की नोटिस का जवाब दे सकते हैं। बंगाल के एक बीजेपी नेता, जिन्होंने नाम न छापने की शर्त पर बात की, ने कहा कि नोटिस और चारों की गिरफ्तारी ने उनके खिलाफ जनता की भावना को बदल दिया है।
उन्होंने कहा, ”लोगों को शपथ लेने के कुछ दिनों बाद टीएमसी के वरिष्ठ मंत्रियों को जेल में घसीटे जाने का दृश्य पसंद नहीं आया। कानूनी प्रक्रिया पर भी सवाल उठाए गए। हमारे केंद्रीय नेतृत्व ने कहा है कि केवल विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ही सार्वजनिक रूप से बोलेंगे और बंदोपाध्याय प्रकरण पर मीडिया को जानकारी देंगे। हम चुप हैं।” केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने 17 मई को मंत्रियों फिरहाद हकीम, सुब्रत मुखर्जी, विधायक मदन मित्रा और पूर्व महापौर सोवन चटर्जी को 2016 के नारद स्टिंग ऑपरेशन वीडियो के सिलसिले में गिरफ्तार किया था, जिसमें उन्हें एक काल्पनिक फर्म के लिए कथित तौर पर पैसे लेते हुए दिखाया गया था। इसके बाद से वे जमानत पर रिहा कर दिए गए।
टीएमसी ने गिरफ्तारी को विधानसभा चुनावों में बीजेपी की हार से जोड़ा है और सवाल किया है कि सीबीआई ने अधिकारी और मुकुल रॉय को गिरफ्तार क्यों नहीं किया, जिन्हें स्टिंग वीडियो में भी देखा गया था और बाद में वे टीएमसी से बीजेपी में शामिल हो गए थे। एक अन्य बीजेपी नेता ने कहा कि बंदोपाध्याय और उनके छोटे भाई अंजान जोकि एक न्यूज चैनल के संपादक थे और दो सप्ताह पहले कोविड -19 से मृत्यु हो गई थी, वे राज्य में लोकप्रिय हैं। उन्होंने कहा, ”वे एक गांव से आए और जीवन में काफी आगे बढ़े। दोनों मेधावी छात्र थे। बंगाल के लोग, खासकर छात्र और युवा इसे एक बंगाली नौकरशाह के उत्पीड़न के रूप में देख रहे हैं। अधिकांश सोशल मीडिया संदेश क्षेत्रीय राजनीति की बात कर रहे हैं।”
वहीं, टीएमसी विधायक और ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी ने सवाल किया है कि बंदोपाध्याय, जो कोविड महामारी का प्रबंधन कर रहे हैं, को आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत नोटिस क्यों भेजा गया? उन्होंने कहा, ”चुनाव के दौरान प्रचार करने के लिए मेरे और बीजेपी सहित सभी दलों को कारण बताओ पत्र भेजे जाने चाहिए। जब लोगों को घर पर रहना था, तो हमने प्रधानमंत्री को यह कहते हुए देखा कि वह अपनी रैलियों में भारी भीड़ से अभिभूत हैं। चुनाव आयोग को महामारी के दौरान आठ चरणों में मतदान कराने के लिए नोटिस दिया जाना चाहिए।” उधर, बीजेपी नेता रितेश तिवारी ने बीजेपी के खिलाफ नए अभियान के लिए “चुनावों के दौरान टीएमसी का समर्थन करने वाले वही वाम-उदारवादी, बुद्धिजीवी और मीडिया के वर्ग” को दोषी ठहराया। उन्होंने कहा कि इस मीडिया ने यह रिपोर्ट नहीं की कि मंगलवार को केंद्र ने चुनाव के दौरान मोदी द्वारा किए गए वादे के अनुसार जल-जीवन मिशन के तहत बंगाल के लिए 7,000 करोड़ रुपये जारी किए। हम चुनाव हार गए, लेकिन प्रधानमंत्री ने अपना वादा निभाया क्योंकि वह राजनीति को प्रशासन के साथ नहीं मिलाते हैं।