केंद्र के तीन कृषि कानूनों के विरोध में महीनों से आंदोलन कर रहे किसानों की संयुक्त समिति ने हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर सरकार को आश्वासन दिया है कि वे किसी सरकारी कार्यक्रम में बाधा नहीं पहुंचाएंगे तथा कानून के दायरे में रह कर ही अपनी मांगे रखेंगे।
हिसार मंडलायुक्त चंद्रशेखर ने शुक्रवार को जारी एक बयान में यह जानकारी देते हुए किसान संगठनों की इस संंबध में घोषणा को सराहनीय बताया और कहा है कि किसान नेताओं की सकारात्मक भूमिका के कारण ही सरकार ने गत 16 मई को दर्ज किए गए मामले वापस लेने का निर्णय लिया है। सरकार ने किसानों की मांग को मानते हुए प्रदर्शन के दौरान एक किसान की मौत होने पर उसके एक परिजन को डीसी रेट पर नौकरी देने की अनुमति प्रदान की है। उन्होंने कहा कि प्रशासन किसानों की समस्याओं पर बातचीत के लिए सदैव तत्पर है।
मंडलायुक्त ने किसानों से अपील की है कि आम जनता तथा सर्वहित में वे टीकाकरण तथा स्वास्थ्य कार्यक्रमों में सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों को अपना सहयोग प्रदान करें। देहात में घर-घर सर्वेक्षण बहुत कामयाब रहा है, जिसके कारण कोविड रोगियों को तुरंत इलाज की सुविधा उपलब्ध कराई गई है।
बता दें कि, नए कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे किसानों ने अपने आंदोलन के छह माह पूरे होने पर बुधवार को ‘काला दिवस’ मनाया था और इस दौरान उन्होंने काले झंडे फहराए, सरकार विरोधी नारे लगाकर पुतले जलाए और प्रदर्शन किया था।
26 नवंबर से दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं किसान
गौरतलब है कि नए कृषि कानूनों के खिलाफ बीते साल 26 नवंबर से हजारों की तादाद में किसान दिल्ली और हरियाणा की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं। कृषि कानूनों को रद्द कराने पर अड़े किसान इस मुद्दे पर सरकार के साथ आर-पार की लड़ाई का ऐलान कर चुके हैं। किसानों ने सरकार से जल्द उनकी मांगें मानने की अपील की है। वहीं सरकार की तरफ से यह साफ कर दिया गया है कि कानून वापस नहीं होगा, लेकिन संशोधन संभव है।
किसान हाल ही बनाए गए तीन नए कृषि कानूनों – द प्रोड्यूसर्स ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फैसिलिटेशन) एक्ट, 2020, द फार्मर्स ( एम्पावरमेंट एंड प्रोटेक्शन) एग्रीमेंट ऑन प्राइस एश्योरेंस एंड फार्म सर्विसेज एक्ट, 2020 और द एसेंशियल कमोडिटीज (एमेंडमेंट) एक्ट, 2020 का विरोध कर रहे हैं। केन्द्र सरकार सितंबर में पारित किए तीन नए कृषि कानूनों को कृषि क्षेत्र में बड़े सुधार के तौर पर पेश कर रही है, वहीं प्रदर्शन कर रहे किसानों ने आशंका जताई है कि नए कानूनों से एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) और मंडी व्यवस्था खत्म हो जाएगी और वे बड़े कॉरपोरेट पर निर्भर हो जाएंगे।