कोरोना के बाद देश में अब ब्लैक फंगस के मामले भी देखने को मिल रहे हैं। जिससे सभी की चिंता एकबार फिर बढ़ गई है। डॉक्टरों ने इलाज में होने वाली देरी और दवाओं की कमी को लेकरर चेतावनी दी है। राजधानी दिल्ली में ब्लैक फंगस के बढ़ते मामलों के बीच डॉक्टरों ने चिंता जताई है और कहा है कि दवाई को उपलब्धता में सुधार करना चाहिए. कई राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों ने म्यूकोर्मिकोसिस यानी ब्लैक फंगस को महामारी भी घोषित कर दिया है।
डॉक्टरों ने एएनआई से बात करते हुए कहा कि फंगस के इलाज में इस्तेमाल की जाने वाली एम्फोटेरिसिन दवा की कमी है। उन्होंने कहा कि इलाज जल्दी शुरू होना चाहिए क्योंकि ठीक हो चुके कोरोना मरीज का शरीर पहले से ही कमजोर हो जाता है। डॉक्टरों ने कहा कि कोरना के इलाज के दौरान इस्तेमाल किए गए स्टेरॉयड जैसे कारक ब्लैक फंगस के प्रति ज्यादा संवेदनशील बना सकते हैं।
डॉक्टरों ने कहा कि उन्हें पता चल गया था कि COVID-19 के कारण ब्लैग फंगस के मामले होंगे, लेकिन अब दवाओं की कमी है। वेंकटेश्वर अस्पताल के ईएनटी सर्जन और वरिष्ठ सलाहकार डॉ विवेक आर सिन्हा ने कहा कि रोगी के लक्षणों के अनुसार उपचार अलग-अलग हो सकता है।
उन्होंने कहा कि “कोरोना की पहली लहर में अपने अनुभव के आधार पर ब्लैक फंगस में वृद्धि का अनुमान लगा लिया था लेकिन केसों की इतनी भारी संख्या क लिए हम तैयार नहीं थे संक्रमण से निपटने वाले सभी मामलो के लिए दवाएं भी नहीं है. एम्फोटेरिसिन तीन अलग-अलग रूपों में उपलब्ध है। लिपोसोमल एम्फोटेरिसिन, एक लिपिड कॉम्प्लेक्स संस्करण और एम्फोटेरिसिन बी डीऑक्सीकोलेट (एंटी-फंगल का पुराना संस्करण)।”
शहर के कई अस्पतालों के डॉक्टरों ने कहा कि ब्लैक फंगस के इलाज में इस्तेमाल की जाने वाली दवाओं की कमी है।
केंद्र सरकार द्वारा मौजूदा निर्माताओं के अलावा पांच और निर्माताओं को एम्फोटेरिसिन-बी बनाने का लाइसेंस दिया गया है। इस साल जुलाई से प्रति माह एम्फोटेरिसिन-बी की अतिरिक्त 1,11,000 शीशियां उपलब्ध होने की उम्मीद है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने देश में म्यूकोर्मिकोसिस के 5,424 मामले दर्ज किए हैं, जिनमें से 4,556 रोगियों को कोरोना हुआ था और 55 लोग डाइबिटीज के शिकार हैं।