विधानसभा चुनाव में हार के बाद पंजाब और राजस्थान के घटनाक्रम ने कांग्रेस की चिंता बढ़ा दी है। पार्टी को डर है कि इन दोनों प्रदेशों में विधायकों की नाराजगी को जल्द दूर नहीं किया गया, तो कुछ और विधायक इस्तीफे की पेशकश कर सकते हैं। पंजाब में पार्टी को बहुत ज्यादा डर नहीं है, पर राजस्थान में विधायकों की नाराजगी पार्टी पर भारी पड़ सकती है।
विधायक हेमाराम चौधरी के इस्तीफे और चाकसू से पार्टी विधायक वेद सोलंकी के मुखर होने को पार्टी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सरकार पर दबाव के तौर पर देख रही है। क्योंकि करीब एक साल होने के बावजूद पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के समर्थकों को सरकार में हिस्सेदारी नहीं मिली है। मंत्रिमंडल विस्तार और दूसरी राजनीतिक नियुक्तियां नहीं हो रही हैं।
पिछले साल जुलाई में सियासी संकट के दौरान सचिन पायलट खेमे का साथ देने वाले एक विधायक ने कहा कि हमें अपने क्षेत्र से जुड़े कामों को कराने के लिए काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। मंत्रिमंडल विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियों को जानबूझकर टाला जा रहा है। आखिर कोई कब तक सब्र कर सकता है। हेमाराम चौधरी ने भी इसलिए इस्तीफा दिया है। इस सबके बावजूद कांग्रेस बहुत ज्यादा फिक्रमंद नहीं है।
पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि हेमाराम चौधरी के इस्तीफे को बहुत ज्यादा गंभीरता से नहीं लेना चाहिए। चौधरी इससे पहले भी कई बार त्यागपत्र दे चुके हैं। उन्हें मनाने की कोशिश जारी है, उम्मीद है वह जल्द अपना इस्तीफा वापस ले लेंगे। बकौल उनके, राजस्थान में सब ठीक है और कांग्रेस एकजुट है।
दरअसल, पिछले साल जुलाई में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ कुछ मुद्दों पर मतभेद के बाद सचिन पायलट ने अपने समर्थक विधायकों के साथ बगावती तेवर अपना लिए थे। हालांकि, वरिष्ठ नेताओं के हस्तक्षेप के बाद पायलट पार्टी के साथ खड़े नजर आए। पार्टी ने भी उनकी शिकायतों की जांच और प्रदेश में समन्वय के लिए तीन सदस्य समिति का गठन किया था। पर करीब दस माह गुजर जाने के बाद भी इस समिति की रिपोर्ट नहीं आई है।