चीन ने शुक्रवार को एक बार फिर से यह कहा है कि 14वें दलाई लामा का उत्तराधिकारी वही चुनेगा। चीन ने स्पष्ट कर दिया है कि अगर दलाई लामा खुद या उनके अनुयायी उत्तराधिकारी चुनते हैं तो बीजिंग उन्हें मान्यता नहीं देगा। चीन की सरकार ने श्वेत पत्र जारी कर यह दावा किया है कि दलाई लामा का पुनर्जन्म और अन्य जीवित बौद्धों को चिंग राजवंश के समय से ही उसकी केंद्र सरकार मंजूरी देती आई है।
चीन की ओर से जारी सरकारी दस्तावेज में इस पर भी जोर दिया गया है कि तिब्बत प्राचीन समय से ही उसका अविभाज्य अंग रहा है। दस्तावेज में आगे लिखा है, साल 1793 से गोरखा घुसपैठियों को खदेड़े जाने के बाद चिंग सरकार ने तिब्बत में व्यवस्था बहाल की और तिब्बत में बेहतर शासन व्यवस्था बनाए रखने के लिए शाही रूप से स्वीकृत अध्यादेश जारी किया।
बता दें कि चीन में सन् 1644 से 1911 तक चिंग राजवंश था। 14वें यानी मौजूदा दलाई लामा अब 85 साल के हो चुके हैं। वह सन् 1959 में ही तिब्बत में चीन की कार्रवाई के बाद भागकर भारत आ गए थे।
भारत ने उनको राजनीतिक शरण दी थी और उसके बाद से अब तक वह हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में रहते आए हैं।
दलाई लामा के उत्तराधिकारी चुने जाने का मुद्दा बीते कुछ सालों से चर्चा में आया जब अमेरिका भी इस मामले में कूदा। अमेरिका ने इस बात की पैरवी की कि उत्तराधिकारी चुनने का अधिकार दलाई लामा, तिब्बती बौद्ध नेता और तिब्बत के लोगों का है। इसके लिए अमेरिकी कांग्रेस ने Tibetan Policy and Support Act of 2020 (TPSA) भी पारित किया। हालांकि, चीन का विदेश मंत्रालय लगातार यह कहता रहा है कि दलाई लामा को चुनने की प्रक्रिया काफी पुरानी है। चीन ने कहा है कि 14वें दलाई लामा को धार्मिक और ऐतिहासिक परंपराओं का पालन करते हुए चुना गया था और अब उनके उत्तराधिकारी को भी चीन ही चुनेगा।