हिमाचल प्रदेश की एक अदालत में न्यायाधीश ने बलात्कार के आरोपी को यह कहते हुए बेल देने से इनकार कर दिया कि ‘ना का मतलब ना’ ही होता है। दरअसल, इस शख्स पर एक 17 साल की लड़की से रेप का आरोप है और उसने कोर्ट में यह दलील दी थी कि वह लड़की को जानता था और दोनों के बीच आपसी सहमति से संबंध बने थे। कोर्ट ने यह भी कहा कि इतना साधारण सा वाक्य कुछ पुरुषों के लिए समझना सबसे ज्यादा मुश्किल होता है।
हिमाचल प्रदेश के राजगढ़ में नाबालिग पीड़िता की ओर से एफआईआर दर्ज करवाने के बाद आरोपी को बीते साल 18 दिसंबर को गिरफ्तार किया गया था।
आरोप के मुताबिक, 17 दिसंबर को पीड़िता बस का इंतजार कर रही थी और तभी आरोपी ने उसे अपनी जीप में घर तक छोड़ने का ऑफर दिया। पीड़िता जब जीप में बैठी तो आरोपी ने कथित तौर पर गाड़ी का रास्ता बदल लिया और सुनसान इलाके में ले जाकर उससे रेप किया।
जज अनूप चित्कारा ने अपने आदेश में इस बात का जिक्र किया कि लड़की ने आरोपी को ‘ना’ कहा था। हालांकि, आरोपी ने लड़की से जबरन संबंध बनाने चाहे और उसे शादी का प्रस्ताव भी दिया। जब लड़की ने मना कर दिया तो आरोपी ने कथित तौर पर उसके साथ बलात्कार किया और उसे सड़क पर छोड़ दिया। इसके बाद लड़की बस से घर पहुंची और अपनी मांग को पूरी वारदात बताई जिसके बाद परिवार वालों ने एफआईआर दर्ज कराई।
न्यायाधीश चित्कारा ने कहा, ‘न का मतलब न होता है- यह आसान सा वाक्य कुछ पुरुषों को समझना सबसे मुश्किल लगता है। नहीं का मतलब हा नहीं होता है, इसका मतलब यह नहीं कि लड़की शर्मीली है, इसका मतलब यह नहीं कि लड़की चाहती है कि लड़का उसे मनाए, इसका मतलब यह नहीं लड़के को लड़की के पीछे पड़े रहना होगा। ‘ना’ शब्द को स्पष्टीकरण या फिर प्रामाणिकता की जरूरत नहीं है। यह इतने पर ही खत्म होता है और पुरुष को रुकना होता है।’
जज ने आदेश देते समय यह भी कहा कि लड़के के छूते ही लड़की ने मना किया लेकिन वह नहीं माना। इसमें कहीं भी न तो मर्जी है और न ही एक-दूसरे को महसूस करने की इच्छा। जज ने यह भी कहा कि लड़की चाहती तो आसानी से अपने घरवालों से यह सब छिपा सकती थी लेकिन उसने ऐसा नहीं किया, जो इस मामले की सच्चाई की ओर इशारा करता है।