उत्तराखंड में जंगल की आग बेकाबू होती जा रही है। जंगल की आग ने इस साल का रिकार्ड तोड़ा। लगातार बढ़ रही आग की घटनाओं को लेकर वन मंत्री डॉ. हरक सिंह ने वन मुख्यालय में अधिकारियों की समीक्षा बैठक कर जरूरी निर्देश दिए। शुक्रवार को प्रदेशभर में आग की 95 घटनाएं दर्ज की गईं। इनमें कुल दो सौ हेक्टेयर जंगल जले। इसमें अकेले 175 हेक्टेयर तो रिजर्व फॉरेस्ट ही था। इसके अलावा 25 हेक्टेयर सिविल सोयम और वन पंचायत का था। 12 घंटे में सर्वाधिक जंगल जलने का ये इस साल का नया रिकार्ड है। इसके साथ ही अप्रैल में अब तक कुल 21 सौ हेक्टेयर जंगल जल चुका है।
गंभीर हालात देखते हुए शुक्रवार को वन मंत्री ने सभी डिवीजनों की वीसी के माध्यम से समीक्षा की। इसमें इस बात पर भी नाराजगी जताई कि अधिकारी गंभीरता से वनाग्नि को नहीं ले रहे हैं। उन्होंने पौड़ी का उदाहरण देते हुए कहा कि ऐसे वक्त में डीएफओ का छुट्टी जाना निराशाजनक है। सभी को जिम्मेदारी समझनी होगी, तभी जंगलों की आग बच पाएगी। बैठक में पीसीसीएफ राजीव भरतरी, सीसीएफ मान सिंह के साथ ही सभी डीएफओ जुड़े।
बता दें कि उत्तराखंड में धधकते जंगलों की आग बुझाना छोड़ वायुसेना के दोनों हेलीकॉप्टर वापस लौट गए हैं। कुमाऊं मंडल में तो हेलीकॉप्टर आग बुझाने के लिए एक राउंड भी नहीं लगा पाया। राज्य के जंगलों में भड़क रही आग पर काबू पाने के लिए मुख्यमंत्री तीरथ रावत ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से दो हेलीकॉप्टर और एनडीआरएफ के जवान भेजने का आग्रह किया था। केंद्र ने चार अप्रैल को दो हेलीकॉप्टर भेजे, इनमें एक गढ़वाल तो दूसरा कुमाऊं मंडल में आग बुझाने के लिए तैनात किया गया।
गढ़वाल में तैनात हेलीकॉप्टर ने टिहरी झील से पानी लेकर जंगलों में आग बुझाने को छह राउंड जरूर लिए, पर कुमाऊं मंडल में हेलीकॉप्टर एक भी उड़ान नहीं भर पाया। मुख्य वन संरक्षक (फारेस्ट फायर) मान सिंह ने बताया कि जंगलों की आग काफी हद तक काबू में आने पर तीन दिन बाद इन्हें वापस भेज दिया है। अलबत्ता, एनडीआरएफ की तीन टुकड़ियां अभी भी नैनीताल, यूएसनगर और पौड़ी में तैनात की गई हैं।
जंगलों की आग हिमालय के पर्यावरण को होने वाले नुकसान को लगतार बढ़ा रही है। प्रदेश के 1500 हेक्टेयर से अधिक जंगल आग में जल चुके हैं। इस कारण कुमाऊं की हवा में ब्लैक कार्बन की मात्रा में करीब दो गुना की वृद्धि हो चुकी है। ऐसे में अब यह ब्लैक कार्बन पहले हिमालय के ग्लेशियरों और उसके बाद इनसे निकलने वाली सदानीरा नदियों की सेहत बिगाड़ेगा। जीबी पंत नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ हिमालयन इंवायमेंट के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. जेसी कुनियाल के अनुसार पूरी दुनिया में हो रहे शोध साबित कर चुके हैं कि वनाग्नि से उठने वाला कार्बन ग्लेशियरों के लिए खतरा है।