सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि उच्च शिक्षा या योग्यता को नौकरी पाने के लिए अवगुण या दोष नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के उस आदेश को दरकिनार कर दिया, जिसमें बीई या बीटेक डिग्रीधारकों को कनिष्ठ अभियंता (जूनियर इंजीनियर) के पद पर नियुक्ति नहीं देने के लिए कहा था। इसके साथ ही जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस एस. रवींद्र भट्ट की पीठ ने बीई या बीटेक डिग्रीधारकों को हिमाचल प्रदेश राज्य बिजली बोर्ड में जूनियर इंजीनियर के पदों पर नौकरी के लिए आवेदन करने की इजाजत दे दी है।
मामले में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अहम सवाल था कि क्या डिग्रीधारक भी जूनियर इंजीनियर पद के लिए आवेदन कर सकते हैं? पीठ ने नियमों का बारीकी से गौर करने के बाद पाया कि नियुक्तियों में बड़ी हिस्सेदारी सीधी भर्तियों की होती है। वहीं, प्रमोशन से भरे जाने वाले उच्च पद यानी सहायक अभियंता के लिए सीधी भर्तियां 36 फीसदी तक ही होती हैं। बाकी 64 फीसदी में विभिन्न उप कोटा फीडर कैडर के लिए निर्धारित किए गए हैं और इनमें सबसे अधिक हिस्सेदारी जूनियर इंजीनियरों की होती है।
पीठ ने आदेश में कहा, यह दिखाता है कि इस नियम को बनाने का मकसद डिग्रीधारकों को जूनियर इंजीनियर के पद पर विचार करने से दूर रखना नहीं है। पीठ ने राज्य सरकार की ओर से पेश एडिशनल एडवोकेट जनरल अभिनव मुखर्जी की इस दलील को स्वीकार कर लिया कि बोर्ड को जूनियर इंजीनियर पद के लिए न केवल डिप्लोमाधारकों को बल्कि डिग्रीधारकों को भी नियुक्त करने का अधिकार है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर पुनीत शर्मा एवं अन्य की याचिका को स्वीकार कर लिया।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि डिग्रीधारक यह नहीं कह सकते कि उनके पास उच्च शिक्षा या योग्यता है, इसलिए वे जूनियर इंजीनियर पद के लिए आवेदन कर सकते हैं। हाईकोर्ट के इस आदेश को कुछ बीई व बीटेक डिग्रीधारकों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।