किसी व्यक्ति के मकान में हुए अवैध निर्माण को नियमित करने को लेकर नगर निगम पर पूरी तरह से प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है। दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि अवैध निर्माण की प्रकृति और गंभीरता पर निर्भर करता है कि निगम उसे नियमों के दायरे में नियमित करता है या नहीं।
जस्टिस संजीव सचदेवा ने दक्षिण दिल्ली के एक मकान में व्याप्त अवैध निर्माण को नियमित न करने की मांग को लेकर एक महिला की याचिका को ठुकराते हुए यह फैसला दिया। उन्होंने कहा कि अवैध निर्माण को नियमित करने के लिए नगर निगम के पास दाखिल अर्जी को स्वीकार किया जा सकता है या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि मकान में कितना अवैध निर्माण है। वह तय नियमों और नीतियों के तहत नियमित करने योग्य है या नहीं।
हाईकोर्ट ने कहा कि नगर निगम को किसी अवैध निर्माण को नियमित करने की मांग को लेकर संपत्ति मालिक द्वारा दाखिल अर्जी पर विचार करने से नहीं रोका जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि यदि कोई व्यक्ति अपने मकान में हुए अवैध निर्माण को नियमित करने की मांग को लेकर अर्जी दाखिल करत है तो नगर निगम को उस पर अपनी नीतियों और नियमों के तहत विचार करके निर्णय लेना होगा।
हाईकोर्ट ने कहा कि इसके लिए नगर निगम बाध्य है। पूनम गुप्ता और अन्य की ओर से दक्षिणी दिल्ली नगर निगम (एसडीएमसी) को एक व्यक्ति के मकान में अवैध निर्माण को नियमित करने से रोकने की मांग करते हुए याचिका दायर की गई थी। कोर्ट ने इस याचिका को खारिज करते हुए कहा कि संपत्ति मालिक की अर्जी नगर निगम के पास लंबित है और निगम तथ्यों व नियमों के तहत इस पर निर्णय ले।
यह है मामला
साउथ एक्स पार्ट-1 निवासी पूनम गुप्ता और अन्य ने एक मकान की तीसरी मंजिल पर हुए अवैध निर्माण को नियमित नहीं करने के लिए दक्षिण निगम को आदेश देने की मांग की थी। उन्होंने याचिका में मकान के पहली और दूसरी मंजिल का मालिक होने का दावा किया था। वकील एसबी त्रिपाठी ने हाईकोर्ट को बताया कि तीसरी मंजिल पर उनके मुवक्किल का कोई अधिकार नहीं है।