नशे की हालत में कार चलाते हुए एक व्यक्ति को टक्कर मारने के मामले में दोषी वाहन चालक की दो साल की सजा को सत्र अदालत ने रद्द कर दिया है। अदालत ने इस मामले में सजा के खिलाफ अपील पर सुनवाई करते हुए कहा है कि शराब पीकर वाहन चलाना अपराध नहीं है, बल्कि निर्धारित मात्रा से अधिक नशे में वाहन चलाने वाला जेल जाता है। सत्र अदालत ने कहा कि निचली अदालत ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए कई कानूनी पहलुओं को नजरअंदाज किया है।
पटियाला हाउस स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश प्रवीण सिंह की अदालत ने इस पूरे मामले पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत ने इस वाहन चालक को नशे की हालत में कार चलाते हुए एक व्यक्ति को टक्कर मारने व लापरवाही से मौत का जिम्मेदार ठहराया था।
सत्र अदालत ने कहा कि बेशक यह सही है कि इस हादसे की वजह से एक व्यक्ति की बहुमूल्य जान चली गई। उसके परिवार को भारी मानसिक व शारारिक नुकसान हुआ। लेकिन किसी भी आपराधिक मामले में कानून का अपना दायरा होता है। न्यायिक अधिकार की अपराध को साबित करने के लिए पुख्ता साक्ष्य पर विचार करने की जिम्मेदारी हैं जोकि इस मामले में पूरे नहीं हो रहे हैं। इसी का लाभ इस मामले में दिया जा रहा है और दोषी को इस मामले से बरी किया जा रहा है।
निचली अदालत ने यहां छोड़ी खामी
सत्र अदालत ने कहा कि इस मामले में निचली अदालत ने कल्पना के आधार पर मान लिया कि आरोपी नशे की हालत में वाहन चला रहा था। इसलिए उसकी कार की रफ्तार तेज थी और उसने टक्कर मार दी। जबकि आरोपी की मेडिकल रिपोर्ट में यह नहीं देखा गया कि आरोपी के शरीर में नशे की कितनी मात्रा थी।
मेडिकल करने वाला डॉक्टर अदालत में गवाह के तौर पर आया और उसने कहा कि यह सह है कि घटना के समय आरोपी नशे में था लेकिन उसके खून का सैम्पल लेकर जांच के लिए फोरेंसिक लैब नहीं भेजा गया। सत्र अदालत ने कहा कि आरोपी के तेज रफ्तार में वाहन चलााने व टक्कर मारने की पुष्टि के लिए भी प्रत्यक्ष गवाह नहीं मिला। यह घटना 11 जुलाई 2007 को कनॉट प्लेस इलाके में घटित हुई था।
निर्धारित मात्रा में शराब पीकर वाहन चलाना गैरकानूनी नहीं
सत्र अदालत ने अपने आदेश में शराब की मांत्रा का उल्लेख करते हुए कहा कि अगर किसी व्यक्ति के खून में 30एमजी/100एमएल तक शराब की मात्रा पाई जाती है तो माना जाता है कि वह वाहन पर नियंत्रण करने की स्थिति में था। लेकिन अगर इससे ज्यादा मात्रा पाई जाती है तो माना जाता है कि वह होशो-हवाश में नहीं था और उसने लापरवाही करते हुए जान ले ली। जबकि यहां आरोपी के खून की जांच कराना जरुरी नहीं समझा गया। मेडिकल रिपोर्ट यह कहकर खानापूर्ति कर दी गई कि वह नशे में था। अदालत ने कहा कि किसी भी व्यक्ति को अवधारणा के आधार पर सजा नहीं सुनाई जा सकती।