दिल्ली हाईकोर्ट ने भारत तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) के कॉन्स्टेबल की उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें पत्नी के डिप्रेशन से पीड़ित होने और नवजात बच्चे को खतरा होने का हवाला देते हुए लद्दाख ट्रांसफर करने के आईटीबीपी के फैसले पर रोक लगाने की गुहार लगाई गई थी।
हाईकोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कॉन्स्टेबल की पत्नी की मेडिकल जांच करने वाले बोर्ड की राय और महिला का बयान रेखांकित किया जिसमें उन्होंने कहा कि छोटा बच्चा होने की वजह से वह लद्दाख नहीं जाना चाहते। हाईकोर्ट ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं है कि यह याचिका केवल ट्रांसफर रोकने के लिए दायर की गई और याचिकाकर्ता इस हद तक गया कि उसने पत्नी की डिलीवरी के बाद डिप्रेशन होने एवं नवजात बेटे को उससे खतरा होने तक का दावा किया।
जस्टिस मनमोहन सिंह और जस्टिस आशा मेनन की बेंच ने गुण-दोष के आधार पर याचिका खारिज करते हुए उस अंतरिम आदेश को भी रद्द कर दिया जिसमें याचिकाकर्ता के स्थानांतरण पर रोक लगाई गई थी। इससे पहले प्राधिकार ने भारत-तिब्बत पुलिस बल (आईटीबीपी) में कॉन्स्टेबल को 17 मार्च से लद्दाख में तैनात बल की 37वीं बटालियन में अपनी सेवा देने का आदेश दिया था।
बेंच ने 25 मार्च के अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता को निर्देश दिया जाता है कि वह अपनी नई पोस्टिंग पर जल्द से जल्द ज्वॉइन करे, जो एक सप्ताह से अधिक लेट नहीं होना चाहिए। यदि याचिकाकर्ता उक्त पोस्टिंग में शामिल नहीं होता है, उत्तरदाता कानून के अनुसार याचिकाकर्ता के खिलाफ उचित कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्रता में होगा।
कॉन्स्टेबल ने 8 अक्टूबर, 2018 के एक कार्यालय ज्ञापन के आधार पर अपने ट्रांसफर आदेश को चुनौती दी थी। याचिका में कहा गया था कि उसकी पत्नी ने पिछले साल जनवरी में एक बेटे को जन्म दिया था और उसके तुरंत बाद उसकी पत्नी में डिप्रेशन के लक्षण दिखने शुरू हो गए थे और अब वह अपने एक साल के बच्चे का की देखभाल करने वाला अकेला व्यक्ति था।
याचिका में कहा गया है कि कॉन्स्टेबल ने अधिकारियों को एक पत्र भेजा जिसमें उसके ट्रांसफर पर रोक लगाने का अनुरोध किया गया और उसे अपनी पत्नी की मानसिक हालत और बच्चे की देखभाल करने की आवश्यकता के कारण अपनी वर्तमान पोस्टिंग में उनके आसपास रहने की अनुमति देने की मांग गई थी। हालांकि, आज तक अधिकारियों से कोई जवाब नहीं मिला है।
अदालत के पहले के आदेश के अनुपालन में, अधिकारियों द्वारा तिगरी कैंप के आईटीबी बेस अस्पताल में दो मनोचिकित्सकों और एक स्त्री रोग विशेषज्ञ को शामिल कर एक मेडिकल बोर्ड स्थापित किया गया था। बोर्ड ने कहा था कि महिला वर्तमान में अच्छी तरह से व्यवहार कर रही थी और उसमें डिप्रेशन का कोई उल्लेख नहीं किया गया था।